डॉ. प्रवीण तोगड़िया
यह सर्वविदित है कि मनुष्य की उत्पत्ति किस प्रकार हुई? भगवान् शंकर के ऊँ से रुद्र की, पुरुष और प्रकृति की, सप्तर्षियों, तदनुक्रम अन्य ऋषियों से हम सबकी उत्पत्ति हुई। हमारा हिन्दू धर्म ऐसा श्रद्धा से मानता है। उस आधार पर अर्थात् जिस ऋषि से हमारी उत्पत्ति हुई, वह ऋषिवर हमारे पूर्वज माने जाते हैं और वहीं हमारा गोत्र माना जाता है। अर्थात् उन ऋषिवरों से जन्मी सब प्रजा अद्यतन हम सब हिन्दू हैं। भारत में इसीलिए सबके पूर्वज एक हैं। सबके पूर्वज सप्तर्षि और उनके सुपुत्र हैं।

इसमें एक महत्त्व का बिन्दु यह है कि कश्यप हों, कौशिक हों या अत्रि, इन ऋषियों से जन्मे- यानी कि जिनका गोत्र कश्यप हो या अत्रि हो या कौशिक हो- सभी ‘एक’ हैं। राजपूतों का गोत्र गौतम हो या ब्राह्मणों का, वणिकों का गोत्र गौतम हो या अनुसूचितों का- ऋषिवर मूलत: हमारे सबके पूर्वज हैं, इसलिए हम सभी हिन्दू एक हैं।

अब तक हम ही यह कहते थे, अब तो आधुनिक विज्ञान ने भी विविध प्रयोगों के आधार पर यह मान लिया है कि गुणसूत्र और गुणतत्वों के आधार पर (आनुवंशिक रूप से) हम सबके पूर्वज एक थे अर्थात् हम सब हिन्दू एक हैं।

शिव भगवान् का यह विश्व-उत्पत्ति का और श्री विष्णुजी का यह विश्व प्रतिपादन का ‘डिजाईन’ अद्भुत है। हमारी देवनगरी काशी में इनके कई आधार मिलते हैं। काशी में केवल सर्व देव-देवियाँ, शिवगण और भैरव ही नहीं, उनके साथ अनेक तपस्वी ऋषि भी निवास करते हैं।

काशीखण्ड (जो स्कंदपुराण का हिस्सा है) में उल्लखित 511 शिवालयों में से 11 स्वयंभू लिंग, 46 देवताओं द्वारा स्थापित, 47 ऋषियों द्वारा स्थापित, 7 ग्रहों द्वारा स्थापित, 40 गणों द्वारा अर्चित तथा अन्य 295 शिवलिंग हैं। हम सभी के गोत्र ऋषियों के शिवलिंग काशी में हैं।

प्राचीनकाल से काशी एक अदभुत तपोस्थली मानी गयी है। माँ गंगाजी में स्नान कर अविमुक्त क्षेत्र (काशी) में अविमुक्तेश्वर, विश्वेश्वर, ढुंढीराज गणेश, विशालाक्षी देवी, अन्नपूर्णा देवी, कालभैरव और अन्य देवालयों में (जिनका उल्लेख पंचकोसी यात्रा, विश्वेश्वर अन्तर्गृह यात्रा में आता है) इत्यादि में पूजन कर ये सब ऋषि स्थापित शिवलिंगों की पूजा कर ध्यान धारणा, तप करते थे। प्राचीन काल में तपस्वी ऋषि काशी में जिन स्थानों पर तप करते थे, उनके संबंध में काशीखण्ड में विवरण आता है।

दण्डखात कूप से लेकर, कपालमोचन तीर्थ से गौतमकुण्ड वरुणासंगम तक 25 स्थानों पर कुल योग 85945 तपस्वी तप करते थे। ढ़ाई-ढ़ाई कोस में ये फैले थे- गंगातीर आज भी ध्यान-धारणा, वेद पाठशालाओं का स्थान है। जैगीषव्य ऋषि की गुफा एक ज्येष्ठ स्थान है और आज भी काशी में मकान नं. जे-66/3 में जागेश्वर महादेव के दक्षिण के मठ में वर्तमान हैं। वहां जैमीषष्येश्वर महादेव और जैमीषष्य ऋषि की 2 मूर्तियां भी हैं और यह आज भी सिद्धपीठ माना जाता है। काशी खण्ड 64/71-81 श्लोक कहता है-

जैगीषव्यगुहां प्राप्य योगाभ्यसनतत्पर:।
षण्मासेन लभेत्सिद्धिं वाञ्छतांमदनुग्रहात्॥

जैगीषव्य गोत्र का सम्मेलन यदि वहां किया जाए तो सम्पूर्ण भारत से लाखों लोग वहां आयेंगे और इसमें महनीय यह है कि इनमें कोई एक जाति नहीं अपितु सभी जातियों के हिन्दू होंगे। क्योंकि हम सबके पूर्वज एक हैं, इसलिए हम सब हिन्दू एक हैं- भाई-भाई हैं।

काशी में कुछ ऋषियों के स्थान, तीर्थ, मंदिर सुस्थिति में हैं। वहां पूजन-अर्चन अभिषेक होते हैं-जैसे कि मार्कण्डेय ऋषि का मार्कण्डेयेश्वर मंदिर जो गंगा और गोमति के संगम पर है। वहां भव्य मंदिर है और इस्लाम के बेमुर्व्वत आक्रमणों में भी मार्कण्डेय शिवलिंग और मार्कण्डेय ऋषि की भव्य मूर्ति बची है- इनका उल्लेख महाभारत में आता है-

मार्कण्डेयस्य राजेन्द्र तीर्थ मासाद्य दुर्लभम्।
गोमतीगंगेयोश्चैव संगमे लोकविश्रुते॥

परन्तु ‘काशी एक खोज’ (Explore Kashi) इस प्रकल्प में मैंने अनेक सहयोगियों के साथ 2-3 बार काशी की संकरी गलियों में, घाटों पर, तीर्थों-कुण्डों पर बसे 350-360 मंदिरों के दर्शन किए। उनमें से कुछ आज घरों में हैं, कुछ दूसरे मंदिरों के हिस्सा बने हैं, कुछ पुराने पेड़ों के नीचे यूँ ही खुली धूप, वर्षा में विराजमान हैं। काश्यपेश्वर, अंगीरसेश्वर- इनके अदभुत शिवलिंग और अतिसुंदर नक्काशी किए हुए नंदी हैं। इन गर्भगृहों में अन्नपूर्णा देवी, सूर्य, भैरव, गणेश, कार्तिकस्वामी- इनकी विलक्षण मूतियां हैं। शिखरबंद मंदिर हैं परन्तु घरों के अंग हैं। जिनके घर हैं, वे भी काशी निवासी धार्मिक हिन्दू होने के नाते इन तपस्वी ऋषियों द्वारा स्थापित-पूजित शिवलिंगों की पूजा-अर्चना करते हैं; परन्तु आज सबकी समय और धन की एक मर्यादा है! हमसब जिन ऋषियों की संतान हैं, उन ऋषियों के जो मर्यादित स्थान बचे हैं, उन्हें सहेजना, वहां हर वर्ष जाकर पूजनकर मंदिर, शिवलिंग, कृष्ण मूर्तियां, देवी-गणेश, शिखर आदि का रख-रखाव करना क्या हमारा भी कर्त्तव्य नहीं?

जिन ऋषियों के वंशज होने के कारण आज हम सब हिन्दू एकता, समरसता का दिव्य उदाहरण, भव्य मानक पूरे विश्व के सामने रखते हैं, उन ऋषियों के मंदिरों में क्या हम जाते हैं ?

पितृपक्ष में हम पूर्वजों के लिए श्राद्ध, तर्पण, दान करते हैं। कई स्थानों पर, नदियों पर जाकर दान करते हैं, पितृपूजा करते हैं। अपने पूर्वज गोत्र, ऋषि का स्मरण हम केवल संकल्प में करते हैं- क्या उनके मंदिरों में जाकर, जलाभिषेक कर, उन्हें पुष्प, वस्त्र चढ़ाकर, दीप-धूप से अर्चना कर उन्हें प्रणाम् करना हमारा कर्त्तव्य नहीं?

‘प्रथम पितृ’ होने के नाते हमें यह करना चाहिए। हमारे जैसे हिन्दू संगठनों का यह दायित्व है कि गोत्र ऋषियों के ऐसे महान् तपोस्थली मंदिरों के परिसर में गोत्र सम्मेलनों का आयोजन करें। इनमें हम सभी जातियों को ‘एक पूर्वज’ इस महत्व के, धर्मशास्त्रीय सत्य और विज्ञान का तथ्य होने के सूत्र से जोड़ेंगे। क्योंकि आज इतने युगों के पश्चात् एक गोत्र में अनेक जातियां उत्पन्न हैं।

इसलिए ‘एक हिन्दू धर्म’ के लिए हमारा यह दायित्व है कि हम इस एकता का, जो हमें हमारे प्रथम पूर्वज ऋषियों ने दी है, सम्मान करें। इस एकता का उत्सव मनाएँ, इन मंदिरों की प्रतिष्ठा, तेजस्विता और शक्ति सहेजे रखें। कर्दम, अंगीरस, गौतम, पराशर, कश्यप, अत्रि, वशिष्ठ, वामदेव, व्यास, विभाण्ड, गर्ग, अगस्त्य, कण्व, च्यवन, जैगीषव्य, याज्ञवल्क्य, भारद्वाज, पुलस्त्य, जैमिनी सहित ऐसे 47 गोत्र ऋषियों के स्थान काशी में हैं। अनेक स्थलों में सुंदर पूजा सजती है, कई दिनों तक कोई न कोई दीप जलता है, हमारे कई पूर्वज गोत्र ऋषियों द्वारा स्थापित शिवलिंगों, नंदी, विष्णु, देवी-गणेश- इन पर जमी धूल-मिट्टी साफ होती है। बड़े धूमधाम से, पितृपूजा करनी चाहिए, किन्तु उसका पूर्ण फल तभी मिलेगा जब हम सभी हिन्दू एकत्रित होकर अपने गोत्र ऋषियों के मंदिरों का भी सम्मान, स्वच्छता रखें और नित्य पूजन-अर्चन करें।

‘काशी-एक खोज’ (Explore Kashi) प्रकल्प में हमने ऐसे कई गोत्र ऋषि मंदिर ढूँढ़े, वहाँ दीप जलाए। अब काशी के अन्य अज्ञात (Unexplored) मंदिरों के साथ गोत्र ऋषियों के मंदिरों की भी यात्राएँ, सम्मेलन के लिए www.explorekashi.com, यह वेबसाइट खड़ी हुई है, इसी प्रकार अतिसुंदर कैलेण्डर भी बनाए गए हैं।

आइए, हम सब ‘एक’ हिन्दू समरसता से अपने पूर्वज ऋषियों के तपोछत्र के तले फिर से ‘एक’ हो खड़े रहें। यहीं हिन्दुओं की ताकत है-जिन्हें ध्वस्त करने का प्रयास इस्लाम और चर्च ने किया, अद्यावधि कर ही रहे हैं। हम अच्छी तरह समझ लें कि आज हमारी जाति कोई भी हो, हम सब इन गोत्र ऋषियों के वंशज हैं, वे हमारे ‘पितृ’ हैं, इसलिए हम सब एक हैं। हम सभी हिन्दू एक ही हैं। अपने गोत्र ऋषियों के प्राचीन तीर्थों को अभिनव गरिमा प्रदान कर सभी हिन्दुओं के एकता से उठ खड़े होने का यहीं उपयुक्त समय है।
(लेखक विश्‍व हिंदू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय महामंत्री हैं)


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