दिलीप रथ
विश्व के दुग्ध उत्पादक देशों में भारत का पहला स्थान है। लाखों ग्रामीण परिवारों के लिए दुग्ध व्यवसाय आय का दूसरा महत्वपूर्ण स्रोत बन गया है। रोजगार प्रदान करने और आय के साधन पैदा करने में दुग्ध व्यवसाय की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हो गई है। वर्ष 2007-08 के दौरान भारत में प्रति दिन दूध की खपत 252 ग्राम थी। पिछले तीन दशकों में योजना के अंत तक दुग्ध उत्पादन की विकास दर करीब 4 प्रतिशत थी, जबकि भारत की जनसंख्या की वृध्दि दर लगभग 2 प्रतिशत थी। दुग्ध उत्पादन में वृध्दि के लिए केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा शुरू की गई अनेक योजनाओं के फलस्वरूप यह संभव हो सका है।

स्वतंत्रता के बाद इस दिशा में जो प्रगति हुई है, वह बहुत चमत्कार पूर्ण है। तब से दुग्ध उत्पादन में छह गुनी वृध्दि हुई है। वर्ष 1950-51 में कुल 1 करोड़ 70 लाख टन दूध का उत्पादन होता था जो कि 2007-08 तक 6 गुने से भी अधिक बढक़र 10 करोड़ 48 लाख टन पहुंच गया। देश में सामाजिक-आर्थिक बदलाव लाने में इसे एक महत्त्वपूर्ण साधन के रूप में देखा जाता है।

भारत में दुग्ध व्यवसाय को कृषि के सहायक व्यवसाय के रूप में देखा जाता है। खेती किसानी से बचे कचरे, घास-फूस के इस्तेमाल और परिवार के लोगों के श्रम के जरिये ही इस व्यवसाय की साज-संभाल होती है। देश के करीब 7 करोड़ ग्रामीण परिवार दुग्ध व्यवसाय में लगे हुए हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में करीब 70 प्रतिशत मवेशी छोटे, मझौले और सीमान्त किसानों के पास हैं, जिसकी पारिवारिक आमदनी का बहुत बड़ा हिस्सा दूध बेचने से प्राप्त होता है।

सरकार दुग्ध उद्योग क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए अनेक योजनायें चला रही है। दुग्ध व्यवसाय की प्रगति हेतु सरकार सक्रिय सहयोग दे रही है। इसकी शुरुआत 1970 में शुरू किए गए ‘आपरेशन्स फ्लड ‘ योजना के अन्तर्गत आई श्वेत क्रान्ति से हुई। इस योजना ने सहकारी क्षेत्र में दुग्ध व्यवसाय को अपना कर किसानों को अपने विकास का मार्ग प्रशस्त करने में और एक राष्ट्रीय दुग्ध ग्रिड के जरिये देश के 700 से अधिक शहरों और कस्बों में उपभोक्ताओं तक दूध पहुंचाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इससे बिचौलिए की आवश्यकता पूरी तरह समाप्त हो गई है और इस कारण हर मौसम में दूध के मूल्यों में जो उतार-चढाव हुआ करता था, वह भी समाप्त हो गया है। सहकारी ढांचे में कारण दुग्ध और उससे बने पदार्थों का उत्पादन और वितरण किसानों के लिए काफी सरल और स्वीकार्य हो गया है। इस कार्यक्रम में राज्यों के 22 सहकारी दुग्ध संघों के तहत 170 दुग्धशालाएं ( मिल्क शेड) शामिल थीं, जिनसे 1 करोड़ 20 लाख कृषक परिवारों को लाभ हुआ। आपरेशन फ्लड के समाप्त होने पर दुग्ध उत्पादन प्रति वर्ष दो करोड़ 12 लाख टन से बढ़कर 6 करोड़ 63 लाख टन तक पहुंच गया। इस कार्यक्रम के तहत 265 जिलों को शामिल किया गया था।

तदुपरान्त, सरकार दुग्ध व्यवसाय को लोकप्रिय बनाने और इससे जुड़े पहले छूट गए अन्य क्षेत्रों को सम्मिलित करने के लिए राष्ट्रीय मवेशी (गोधन) और भैंस प्रजनन परियोजना, सघन डेयरी विकास कार्यक्रम, गुणवत्ता संरचना सुदृढीक़रण एवं स्वच्छ दुग्ध उत्पादन, सहकारिताओं को सहायता, डेयरी पोल्ट्री वेंचर कैपिटल फंड, पशु आहार, चारा विकास योजना और पशुधन स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण कार्यक्रम जैसी अनेक परियोजनाओं पर काम कर रही है।

राष्ट्रीय मवेशी और भैंस प्रजनन परियोजना पांच -पांच वर्ष के दो चरणों में, दस वर्ष के लिए अक्तूबर 2000 में शुरू की गई थी। इस परियोजना के तहत महत्त्वपूर्ण देसी प्रजातियों के विकास और संरक्षण पर केन्द्रित जननिक उन्नयन को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके तहत कार्यान्वयन एजेंसियों को अति उन्नत कृत्रिम गर्भाधान सेवाओं को किसानों के दरवाजे तक पहुंचाने के लिए 100 प्रतिशत अनुदान सहायता दी जाती है, सभी प्रजनन योग्य गायों और भैंसों को कृत्रिम गर्भाधान अथवा 10 वर्ष से कम आयु के उच्च प्रजाति के सांडों द्वारा प्राकृतिक रूप से गर्भधारण के लिए लाकर संगठित प्रजनन को प्रोत्साहन दिया जाता है और देसी मवेशियों और भैंसों की नस्ल सुधार का कार्यक्रम हाथ में लिया जाता है। वर्तमान में, 28 राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश इस परियोजना में भाग ले रहे हैं। इन राज्यों को 31 जुलाई 2009 तक 5 अरब 4 करोड़ 73 लाख रुपए की वित्तीय सहायता जारी की जा चुकी है। वीर्य उत्पादन, जो 1999-2000 के दौरान 2 करोड़ 20 लाख स्ट्रा था, 2008-09 तक बढ कर 4 करोड़ 60 लाख स्ट्रा हो गया था। इसी अवधि में गर्भाधान की संख्या 2 करोड़ से बढ़कर 4 करोड़ 40 लाख तक पहुंच गई। नाबार्ड की प्रभाव विश्लेषण रिपोर्ट के अनुसार, गर्भधारण दर कुल मिलाकर 20 प्रतिशत से बढक़र 35 प्रतिशत हो गई है।

’आपरेशन फलड’ के कार्यान्वयन के दौरान जो कमियां रह गई थीं उन्हें पूरा करने के लिए 1993-94 में शत-प्रतिशत अनुदान के आधार पर एकीकृत डेयरी विकास कार्यक्रम (आईडीडीपी) नाम से एक नई योजना शुरू की गई। यह योजना उन क्षेत्रों में विशेष रूप से लागू की गई जो, आपरेशन फ्लड में आने से छूट गए थे। इसके साथ ही पहाड़ी और पिछड़े क्षेत्रों में भी इसको अमल में लाया गया। योजना के मुख्य उद्देश्य थे- दुधारू मवेशियों का विकास, तकनीकी सहायता उपलब्ध कराकर दुग्ध उत्पादन में वृध्दि, दूध की सरकारी खरीद और किफायती ढंग से उसका प्रसंस्करण और विपणन, दुग्ध् उत्पादक को उचित मूल्य दिलाना, रोजगार के अतिरिक्त अवसरों का सृजन और अपेक्षाकृत वंचित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की सामाजिक-आर्थिक और पौष्टिक स्थिति में सुधार।

योजना के आरंभ के बाद 86 परियोजनायें मंजूर की जा चुकी हैं। इनमें से 55 परियोजनाओं पर काम चल रहा है और 31 परियोजनायें पूरी हो चुकी हैं। 31 मार्च 2009 तक 25 राज्यों और एक केन्द्र शासित प्रदेश में 207 जिलों में यह योजना लागू थी और इन पर 5 अरब 1 करोड़ 84 लाख रुपए खर्च किये जा चुके थे। इन परियोजनाओं से विभिन्न राज्यों के 26844 गांवों में 18 लाख 79 हजार किसानों को प्रतिदिन 20 लाख 8 हजार लीटर दूध की खरीद और 16 लाख 20 हजार लीटर दूध की बिक्री में मदद मिली है। इस योजना के तहत प्रतिदिन 18 लाख 49 हजार लीटर दुग्ध-शीतलीकरण और 23 लाख 96 हजार लीटर प्रसंस्करण क्षमता का सृजन हुआ है।

इसके अतिरिक्त, सरकार ने ग्रामीण स्तर पर उच्च गुणवत्ता वाले दूध के उत्पादन के लिए गुणवत्ता संरचना सुदृढीक़रण एवं स्वच्छ दूध उत्पादन नाम से एक नई केन्द्र प्रायोजित योजना शुरू की। इसका उद्देश्य दूध दुहने की सही तकनीक के बारे में किसानों को प्रशिक्षण देकर, उन्हें डिटर्जेंट, स्टेनलेस स्टील के बर्तन आदि देकर, मौजूदा प्रयोगशालाओं- सुविधाओं के सुदृढीक़रण, मिलावट की जांच किट, कीटनाशक दवाएं आदि उपलब्ध कराकर ग्रामीण स्तर पर उच्च गुणवत्ता वाले कच्चे दूध का उत्पादन बढ़ाना है, ताकि स्वच्छ दूध का संग्रहण सुनिश्चित किया जा सके। इसके अलावा, इस योजना के तहत गांवों में ही बड़े पैमाने पर दूध ठंडा करने वाली सुविधायें भी मुहैया कराई गईं। आरंभ होने से अब तक (जुलाई 2009), 21 राज्यों और एक केन्द्र शासित प्रदेश में 1 अरब 95 करोड़ 17 लाख रुपए के खर्च से 131 परियोजनायें मंजूर की जा चुकी हैं, जिनमें से केन्द्र का अंश 2 अरब 51 करोड़ 38 लाख रुपए का रहा। योजनान्तर्गत 21 लाख 5 हजार क्षमता के कुल 1362 बृहद दुग्ध प्रशीतक (बल्क मिल्क कूलर्स) लगाए गए हैं। इस योजना के फलस्वरूप कच्चे दूध के शेल्फ लाइफ (घर में दूध को रखना) में वृध्दि हुई है। इससे दूध की पड़ोस के प्रशीतक केन्द्र पर कम खर्च में भेजा जा सकता है। दूध की बरबादी में कमी आई है, जिससे किसानों की आमदनी में बढ़ोतरी हुई है।

ऑपरेशन फलड कार्यक्रम के तहत देश के विभिन्न भागों में तीन स्तरों वाली सहकारी डेयरी संरचनायें - ग्राम स्तरीय प्राथमिक सहकारितायें, जिला स्तरीय संघ (यूनियन) और राज्य स्तरीय महासंघ (फेडरेशन) - स्थापित की गई थीं। विभिन्न कारणों से अनेक यूनियनों और फेडरेशनों को नुकसान सहना पड़ा। इन संचित हानियों के कारण दुग्ध उत्पादकों को घोर दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है, जिसका परिणाम यह हुआ है कि इन सहकारी संस्थाओं के सदस्य गरीब किसानों को विलम्ब से और अनियमित भुगतान हो रहा है। दुग्ध संघों के पुनर्वास के लिए जनवरी 2000 में केन्द्रीय क्षेत्र की एक नई योजना-सहकारिताओं को सहायता शुरू की गई।

केन्द्र और राज्य सरकारें 50-50 प्रतिशत के अनुपात पर अनुदान प्रदान करती हैं। प्रारंभ होने के बाद से 31 जुलाई, 2009 तक 12 राज्यों के 34 दुग्ध संघों के पुनर्वास प्रस्तावों को अनुमोदित किया गया है। ये राज्य हैं — मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ, क़र्नाटक, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, केरल, महाराष्ट्र, असम, नगालैंड, पंजाब, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु। कुल मिलाकर 23094.13 लाख रुपये की मंजूरी दी गई, जिसमें से केन्द्र का अंश 11566.34 लाख रुपए का था। आरंभ होने के बाद 31 जुलाई, 2009 तक इस योजना के तहत 8939.34 लाख रुपए जारी किये जा चुके हैं। इसके तहत जिन 34 यूनियनों को सहायता दी गई थी उनमें से 17 फिर से अपने पांवों पर खड़ी होकर मुनाफा कमाने लगी हैं। इस योजना की क्रियान्वयन एजेंसी एनडीडीबी की रिपोर्ट में बताया गया है कि अभी भी अनेक यूनियनें हैं जो घाटे में चल रही हैं और विभाग एनडीडीबी द्वारा उनकी सहायता के लिए पेश किए गए प्रस्तावों पर विचार कर रहा है।

इसके अतिरिक्त, असंगठित (दुग्ध व्यवसाय) और पोल्ट्री (मुर्गी पालन) क्षेत्र में संरचनात्मक परिवर्तन लाने के लिए दिसम्बर 2004 में डेयरी और पोल्ट्री के लिए वेंचर कैपिटल फंड नाम से एक व्यापक योजना शुरू की गई। योजना के तहत 50 प्रतिशत ब्याज मुक्त ऋण घटक वाले बैंकों को स्वीकार्य प्रस्तावों के अनुसार ग्रामीण शहरी हितग्राहियों को सहायता प्रदान की जाती है।

योजना पर क्रियान्वयन नाबार्ड के माध्यम से किया जाता है और सरकार द्वारा नाबार्ड को जारी की गई राशि को एक रिवाल्विंग (आवर्ती) कोष में रखा जाता है। इस योजना के शुरू होने के बाद से उस पर अमल के लिए नाबार्ड को 122.29 करोड़ रुपए की राशि जारी की जा चुकी है। योजना के तहत उद्यमी को 10 प्रतिशत राशि का योगदान स्वयं करना होता है ओर 40 प्रतिशत राशि का प्रबंध स्थानीय बैंक से कराना होता है। सरकार नाबार्ड के माध्यम से 50 प्रतिशत ब्याज मुक्त ऋण प्रदान करती है। सरकार उन किसानों को कृषि कार्यों के लिए ऋण पर ब्याज की 50 प्रतिशत राशि की राज सहायता (सब्सिडी) भी देती है जो अपनी किस्तों का नियमित और समय पर भुगतान करते हैं। इस योजना के शुरू होने के बाद 31 जुलाई, 2009 तक 11810 डेयरी और 206 पोल्ट्री इकाइयों को 123.71 करोड़ रुपए की ब्याज मुक्त ऋण राशि जारी की जा चुकी है।

पशु और चारे की डेयरी विकास में अहम भूमिका होती है क्योंकि दुग्ध उत्पादन की कुल लागत का 60 प्रतिशत अंश पशुआहार और चारे पर खर्च होता है। दसवीं पंचवर्षीय योजना हेतु पशु पालन और दुग्ध व्यवसाय पर कार्यकारी समूह की रिपोर्ट के अनुसार देश में जो चारा उपलब्ध है, वह केवल 46.7 प्रतिशत पशुधन के लिए ही पूरा पड़ता है। अत: विभाग दो योजनाओं पर काम कर रहा है– (1) केन्द्रीय चारा विकास संगठन और (2) पशु आहार एवं चारा विकास हेतु राज्यों को सहायता की केन्द्र प्रायोजित योजना।

केन्द्रीय चारा विकास संगठन योजना के तहत देश के विभिन्न कृषि जलवायु वाले क्षेत्रों में 7 क्षेत्रीय चारा उत्पादन एवं प्रदर्शन केन्द्रों के अलावा बंगलौर के हेसरघाटा में एक केन्द्रीय चारा बीज उत्पादन प्रक्षेत्र की स्थापना की गई है ताकि पशुआहार और चारे की समस्याओं का समाधान किया जा सके। इसके अलावा, चारा फसलों के परीक्षण के लिए एक केन्द्रीय मिनीकिट कार्यक्रम के लिए भी आर्थिक सहायता दी जा रही है। ये केन्द्र राज्यों की चारा संबंधी जरूरतों को पूरा करने का काम करते हैं। ये केन्द्र किसानों के खेतों पर ही प्रक्षेत्र प्रदर्शनों और किसान मेलों दिवस के माध्यम से प्रसार गतिविधियां भी चलाते हैं। वर्ष 2007-08 के दौरान इन केन्द्रों ने 264.42 टन चारे का उत्पादन किया, 5241 प्रदर्शन किये, 91 प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किये और 81 किसान दिवस मेले आयोजित किये। वर्ष 2008-09 दौरान इन केन्द्रों ने 278.52 टन चारे के बीज का उत्पादन किया, 6854 प्रदर्शन आयोजित किये, 122 प्रशिक्षण कार्यक्रम और 128 किसान दिवस मेले आयोजित किये। देश के पशुधन का बेहतर स्वास्थ्य सुनिश्चित करने के अलावा देश के बाहर से आने वाले रोगों के प्रवेश को रोकने के प्रयास भी किये जा रहे हैं।

पशु आहार और चारा विकास हेतु राज्यों को सहायता की केन्द्र प्रायोजित योजना के तहत राज्यों को चारा और पशु आहार विकास के उनके प्रयासों को सफल बनाने के लिए केन्द्रीय सहायता दी जाती है। योजना के चार घटक हैं, यथा - चारा ब्लाक निर्माण इकाई, घास मैदान विकास और घास भंडारण, चारा बीज उत्पादन कार्यक्रम और जैव-प्रौद्योगिकी अनुसंधान परियोजना को सहायता देना।

पशुधन ने स्वास्थ्य की देखभाल के लिए देश भर में पशुधन स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण की केन्द्र प्रायोजित योजना पर अमल किया जा रहा है। इसके तहत पशु रोग नियंत्रण हेतु राज्यों को सहायता (एएससीएडी) दी जाती है। इस कार्यक्रम में पोंकनी (पशुओं में अतिसार) उन्मूलन (एनपीआरई), व्यवसायगत दक्षता विकास (पीईडी), मुँहपका नियंत्रण और पोंकनी रोग से मुक्ति कार्यक्रम की निगरानी भी शामिल है।

राष्ट्रीय डेयरी योजना और राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) के रूप मे दो नए प्रयास शुरू किए गए हैं। राष्ट्रीय डेयरी योजना - वैश्वीकरण और बढ़ती क्रय शक्ति के कारण दूर् और दूध से बने उच्च गुणवत्ता वाले पदार्थो की मांग में वृध्दि हो रही है। भावी मांग को देखते हुए सरकार 2021-22 तक प्रति वर्ष 18 करोड़ टन दूध उत्पादन के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए 17,300 करोड़ रुपए के परिव्यय से राष्ट्रीय डेयरी योजना शुरू करने के बारे में विचार कर रही है। अगले 15 वर्षों में दूध उत्पादन 4 प्रतिशत की दर से बढने और कुल दूध उत्पादन में 50 लाख टन की वृध्दि होने का अनुमान है। इस योजना के तहत सरकार प्रमुख दुग्ध उत्पादक क्षेत्रों में दूध का उत्पादन बढाना चाहती है। मौजूदा और नई संस्थागत संरचनाओं के माध्यम से सरकार दूध के उत्पादन, प्रसंस्करण और विपणन ढांचे को सुदृढ और विस्तारित करना चाहती है। योजना में प्राकृतिक और कृत्रिम गर्भाधान के जरिए नस्ल सुधार, प्रोटीन और खनिज युक्त मवेशियों का आहार उत्पादन बढाने के लिए संयंत्रों की स्थापना का प्रावधान किया गया है। योजना में मौजूदा 30 प्रतिशत के स्थान पर अतिरिक्त दूध का 65 प्रतिशत संगठित क्षेत्र में खरीदी करने का प्रस्ताव है। इस परियोजना के लिए विश्व बैंक से सहायता प्राप्त करने की योजना है।

कृषि और सम्बध्द क्षेत्रों को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने 11वीं योजना के दौरान 25,000 करोड़ रुपए के भारी निवेश से राष्ट्रीय कृषि विकास योजना नाम से एक नई योजना शुरू की है। उन सभी गतिविधियों को जो एएचडी एंड एफ (पशुधन विकास, डेयरी एवं मत्स्यपालन) क्षेत्रों के विकास को आगे बढाने का कार्य करती हैं उन्हें राज्य योजना के तहत 100 प्रतिशत अनुदान दिया जाता है। बशर्ते राज्य सरकार ने कृषि एवं सम्बध्द क्षेत्रों के लिए बजट में आवश्यक आबंटन किया गया हो। आशा है कि इससे इस क्षेत्र में ज्यादा लोगों की भागदारी होगी और 11वीं योजना में एएचडी एंड एफ क्षेत्र के लिए कुल मिलाकर 6-7 प्रतिशत वार्षिक का लक्ष्य प्राप्त करने में मदद मिलेगी, जिसमें डेयरी क्षेत्र का योगदान 5 प्रतिशत और मांस क्षेत्र का योगदान 10 प्रतिशत रहने की आशा है। इन सभी गतिविधियों के फलस्वरूप आशा की जा सकती है कि भारत के विश्व के डेयरी क्षेत्र में एक प्रमुख देश के रूप में उभरेगा।
(लेखक डेयरी एवं मत्स्यपालन विभाग में संयुक्त सचिव पशुपालन हैं) 


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