लिमटी खरे
ब्रितानी जब हिन्दुस्तान पर राज किया करते थे, तब उन्होंने साफ कहा था कि आवाम को पानी मुहैया कराना उनकी जवाबदारियों में शामिल नहीं है। जिसे पानी की दरकार हो वह अपने घर पर कुंआ खोदे और पानी पिए। यही कारण था कि पुराने घरों में पानी के स्त्रोत के तौर पर एक कुआ अवश्य ही होता था। ईश्वर की नायाब रचना है मनुष्य और मनुष्य हर चीज के बिना गुजारा कर सकता है, पर बिना पानी के वह जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता। आज चान्द या मंगल पर जीवन की खोज की जा रही है। इन ग्रहों पर यही खोजा जा रहा है कि अगर वहां पानी होगा तो वहां जीवन भी हो सकता है।

देश की विडम्बना तो देखिए आज देश को ब्रितानियों के हाथों से आजाद हुए छह दशक से भी ज्यादा का समय बीत चुका है, किन्तु आज भी पानी के लिए सुदूर इलाकों के लोग तरस रहे हैं। अरे दूर क्यों जाते हैं, देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली में अलह सुब्बह चार बजे से ही भोर होते होते लोग घरों के बर्तन लेकर नलों पर जाकर पानी भरकर लाने पर मजबूर हैं। दिल्ली के दो चेहरे आपको देखने को मिल जाएंगे। एक तरफ संपन्न लोगों की जमात है जिनके घरों पर पानी के टेंकर हरियाली सींच रहे हैं, तो दूसरी ओर गरीब गुरबे हैं जिनकी दिनचर्या पानी की तलाश से आरम्भ होकर वहीं समाप्त भी हो जाती है।

देश की भद्र दिखने वालीं किन्तु साधारण और जमीनी सोच की धनी रेलमन्त्री ममता बनर्जी ने रेल यात्रियों को सस्ता पानी मुहैया कराने की ठानी है। उनके इस कदम की मुक्त कंठ से प्रशंसा की जानी चाहिए कि कम से कम किसी शासक ने तो आवाम की बुनियादी आवश्यक्ता पर नज़रें इनायत की। देखा जाए तो पूर्व रेलमन्त्री और स्वयंभू प्रबंधन गुरू लालू प्रसाद यादव ने रेल में गरीब गुरबों के लिए जनता भोजन आरम्भ किया था। दस रूपए में यात्रियों को पुडी और सब्जी के पेकेट मिलने लगे। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं कि लालू प्रसाद यादव की कुल्हड में चाय और जनता भोजन की योजना सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह गई। वास्तविक धरातल पर अगर देखा जाए तो आम यात्री को न कुल्हड में चाय नसीब है और न ही जनता खाना ही मुहैया हो पा रहा है। चुंनिन्दा रेल्वे स्टेशन पर जनता खाना दिखाकर उसकी तस्वीरों से रेल मन्त्रियों को सन्तुष्ट किया जाता है।

कितने आश्चर्य की बात है कि रेल में जनता खाना कहने को दस रूपए का है, और पीने के पानी की बोतल 12 से 15 रूपए की। इस तरह की विसंगति की ओर किसी का ध्यान गया क्यों नहीं। बहरहाल रेल मन्त्री ने अपने यात्रियों को पांच या छ: रूपए में पानी की बोतल मुहैया करवाने के लिए वाटर फिल्टर और पैकेजिंग प्लांट की शुरूआत कर एक अच्छा कदम उठाया है। देखा जाए तो रेल मन्त्री ममता बनर्जी की इस पहल के दूसरे पहलू पर भी गोर किया जाना चाहिए। जब भारतीय रेल अपने यात्रियों को आधी से कम दर में पानी मुहैया कराने का सोच सकती है तो समझा जा सकता है कि देश में पानी का माफिया कितना हावी हो चुका है कि सरकार पानी जैसी मूल भूत सुविधा के सामने पानी माफिया के आगे घुटने टेके खड़ी हुई है।

चालीस के पेटे में पहुंच चुकी पीढी के दिलोदिमाग से अभी यह बात विस्मृत नहीं हुई होगी जब वे परिवार के साथ सफर किया करते थे तो साथ में पानी के लिए सुराही या छागल (एक विशेष मोटे कपडे की बनी थैली जिसमें पानी ठण्डा रहता था) अवश्य ही रखी जाती थी। राजकुमार अभिनीत मशहूर फिल्म ``पाकीजा`` में जब राजकुमार रेलगाडी में चढता है तो मीना कुमारी के पास रखी सुराही से पानी पीता है। कहने का तात्पर्य यह कि उस वक्त पानी बेमोल था, आज पानी अनमोल है पर इसका मोल बहुत ज्यादा हो गया है।

कितने आश्चर्य की बात है कि करोड़ों रुपयों के लाभ को दर्शाने वाली भारतीय रेल अपने यात्रियों पर इतनी दिलदार और मेहरबान नहीं हो सकती है कि वह उन्हें निशुल्क पानी जैसी सुविधा भी उपलब्ध करा सके। आईएसओ प्राप्त भोपाल एक्सपे्रस सहित कुछ रेलगाडियों में वाटर प्यूरीफायर लगाए गए थे, जिसमें एक रूपए में एक लीटर तो पांच रूपए में एक लीटर ठण्डा पानी उपलब्ध था। समय के साथ रखरखाव के अभाव में ये मशीनें अब शोभा की सुपारी बनकर रह गईं हैं।

देश के शासकों द्वारा अस्सी के दशक तक पानी के लिए चिन्ता जाहिर की जाती रही है। पूर्व प्रधानमन्त्री चन्द्रशेखर ने अपनी भारत यात्रा में स्वच्छ पेयजल को देश की सबसे बडी समस्या बताया था। स्व.राजीव गांधी ने तो स्वच्छ पेयजल के लिए एक मिशन की स्थापना ही कर दी थी। इसके बाद अटल बिहारी बाजपेयी ने पानी के महत्व को समझा और गांवों में पेयजल मुहैया करवाने पर अपनी चिन्ता जाहिर की थी। वर्तमान में कांग्रेस के नेतृत्व में ही सरकार चल रही है। इसके पहले नरसिंहराव भी कांग्रेस के ही प्रधानमन्त्री रहे हैं। आश्चर्य तो तब होता है जब राजीव गांधी द्वारा आरम्भ किए गए मिशन के बावजूद उनकी ही कांग्रेस द्वारा बीस सालों में भी स्वच्छ पेयजल जैसी न्यूनतम सुविधा तक उपलब्ध नहीं कराई गई है।

आज पानी का व्यवसायीकरण हो गया है। उद्योगपति अब नदियों तालाबों को खरीदने आगे आकर सरकार पर दबाव बनाने लगे हैं क्या हो गया है महात्मा गांधी के देश के लोगों को! कहां गई नैतिकता, जिसके चलते आधी धोती पहनकर बापू ने उन अंग्रेजों को   खदेडा था, जिनके बारे में कहा जाता था कि ब्रितानियों के राज में सूरज डूबता नहीं है। सरकार अगर नहीं चेती तो वह दिन दूर नहीं जब देश में केंसर की तरह पनपता माफिया लोगों के सांस लेने की कीमत भी उनसे वसूल करेगा।


फ़िरदौस ख़ान का फ़हम अल क़ुरआन पढ़ने के लिए तस्वीर पर क्लिक करें

या हुसैन

या हुसैन

फ़िरदौस ख़ान की क़लम से

Star Web Media

सत्तार अहमद ख़ान

सत्तार अहमद ख़ान
संस्थापक- स्टार न्यूज़ एजेंसी

ई-अख़बार पढ़ें

ब्लॉग

एक झलक

Followers

Search

Subscribe via email

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

साभार

इसमें शामिल ज़्यादातर तस्वीरें गूगल से साभार ली गई हैं