फ़िरदौस ख़ान
देश में अनाज का ख़राब होना बेहद चिंता का विषय है. जिस देश में हर रोज़ क़रीब सवा आठ करोड़ लोग भूखे सोते हों, वहां हर साल हज़ारों टन अनाज का सड़ जाना प्रशासनिक लापरवाही को ही दर्शाता है. अनाज की बर्बादी पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख़ अपनाते हुए केंद्र सरकार से कहा है कि गेहूं को सड़ाने से अच्छा है, इसे ज़रूरतमंद लोगों में बांट दिया जाए. कोर्ट ने कहा कि ये हैरत की बात है कि एक तरफ़ इतनी बड़ी तादाद में अनाज सड़ रहा है, वहीं लगभग 20 करोड़ लोग कुपोषण का शिकार हैं.

गत 12 अगस्त को ही सुनवाई में न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी व न्यायमूर्ति दीपक वर्मा की खंडपीठ ने सरकार को निर्देश दिए कि हर प्रदेश में एक बड़ा गोदाम बनाया जाए और प्रत्येक डिविज़न व ज़िलों में भी गोदामों का निर्माण किया जाना चाहिए. कोर्ट ने यह भी कहा कि सूखे और बाढ़ प्रभावित इलाकों में भी सार्वजनिक वितरण प्रणाली को मज़बूत किया जाना चाहिए. कोर्ट ने सरकार से यह भी सुनिश्चित करने को भी कहा कि उचित मूल्य की दुकानें महीनेभर खुली रहें. इससे पहले 27 जुलाई की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जहां लोग भूख से मर रहे हों, वहां अनाज का एक भी दाना बेकार छोड़ना गुनाह है.

ग़ौरतलब है कि पिछले काफ़ी अरसे से हर साल हज़ारों टन गेहूं बर्बाद हो रहा है. जहां बहुत-सा गेहूं खुले में बारिश में भीगकर सड़ जाता है, वहीं गोदामों में रखे अनाज का भी 15 फ़ीसदी हिस्सा हर साल ख़राब हो जाता है. मौजूदा आंकड़ों के मुताबिक़ भारतीय खाद्य निगम (एफ़सीआई) के गोदामों में वर्ष 1997 से 2007 के दौरान 1.83 लाख टन गेहूं, 6.33 लाख टन चावल, 2.20 लाख टन धान और 111 टन मक्का सड़ चुका है. इतना ही नहीं हर साल क़रीब 60 हजार करोड़ रुपये की सब्ज़ियां और फल भी ख़राब हो जाते हैं. एक रिपोर्ट अन्य रिपोर्ट के मुताबिक़ पिछले छह वर्षों में देशभर के गोदामों में 10 लाख 37 हज़ार 738 टन अनाज सड़ चुका है. साथ इन गोदामों की सफ़ाई पर क़रीब दो करोड़ 70 लाख रुपये ख़र्च हुए हैं. एफ़सीआई के मुताबिक इस साल जनवरी तक 10688 लाख टन अनाज ख़राब हो चुका है, जबकि इससे पहले सालाना क़रीब दो लाख टन अनाज ख़राब होता रहा है.

अधिकारियों के मुताबिक़ सरकारी एजेंसियां छह करोड़ मीट्रिक टन अनाज ख़रीद चुकी हैं, जबकि भंडारण की क्षमता 447.09 लाख टन अनाज की है. ऐसे में बाक़ी बचे अनाज को खुले में रखा जाता है. इस वक्त देश में क़रीब 28 हज़ार रुपये क़ीमत का अनाज खुले में पड़ा है. शर्मनाक बात तो यह भी है कि एक तो पहले ही गोदामों की कमी है, उसके बावजूद सरकारी गोदामों को निजी कंपनियों को किराये पर दे दिया जाता है और अनाज खुले में सड़ता रहता है. जिन गोदामों में अनाज रखने की जगह बची हुई है, लापरवाही के चलते वहां भी अनाज नहीं रखवाया जाता. खुले में पड़े अनाज को तिरपाल या प्लास्टिक शीट से ढक दिया जाता है, लेकिन बारिश और जलभराव के कारण अनाज सुरक्षित नहीं रह पाता. गोदामों में रखे अनाज को कीड़ों और चूहों से बचाने के भी व्यापक प्रबंध नहीं किए जाते, जिससे अनाज कम हो जाता है. अधिकारियों द्वारा चोरी-छुपे सरकारी अनाज बेचने के आरोप भी लगते रहे हैं.

ग्लोबल हंगर इंडेक्स (विश्व भुखमरी सूचकांक) में अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्था (आईएफपीआरआई) के 88 देशों के विश्व भुखमरी सूचकांक में भारत का 66वां स्थान है. भारत में पिछले कुछ सालों में लोगों की खुराक में कमी आई है. जहां वर्ष 1989-1992 में 177 किलोग्राम खाद्यान्न प्रति व्यक्ति उपलब्ध था, वहीं अब यह घटकर 155 किलोग्राम प्रति व्यक्ति रह गया है. ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति कैलोरी ग्रहण करने की प्रतिदिन की औसत दर जो 1972-1973 में 2266 किलो कैलोरी थी, वह अब घटकर 2149 किलो कैलोरी रह गई है. करीब तीन चौथाई लोग 2400 किलो कैलोरी से भी कम उपयोग कर पा रहे हैं. देश में जहां आबादी 1.9 फीसद की दर से बढी है, वहीं खाद्यान्न उत्पादन 1.7 फीसद की दर से घटा है. गौरतलब है कि क़रीब डेढ़ दशक पहले 1996 में रोम में हुए प्रथम विश्व खाद्य शिखर सम्मेलन में वर्ष 2015 तक दुनिया में भूख से होने वाली मौतों की संख्या को आधा करने का संकल्प लिया गया था, लेकिन वर्ष 2007 तक करीब आठ करोड़ लोग भुखमरी का शिकार हो चुके हैं.


राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिपोर्ट के मुताबिक देश में 46 फीसदी बच्चे कुपोषण का शिकार हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में तीन साल से कम उम्र के करीब 47 फ़ीसदी बच्चे कम वजन के हैं. इसके कारण उनका शारीरिक विकास भी रुक गया है. देश की राजधानी दिल्ली में 33.1 फीसदी बच्चे कुपोषण की चपेट में हैं, जबकि मध्य प्रदेश में 60.3 फीसदी, झारखंड में 59.2 फीसदी, बिहार में 58 फीसदी, छत्तीसगढ में 52.2 फीसदी, उडीसा में 44 फीसदी, राजस्थान में भी 44 फीसदी,  हरियाणा में 41.9 फीसदी, महाराष्ट्र में 39.7 फीसदी, उत्तरांचल में 38 फीसदी, जम्मू कश्मीर में 29.4 फीसदी और पंजाब में 27 फीसदी बच्चे कुपोषणग्रस्त हैं.
यूनिसेफ द्वारा जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के कुल कुपोषणग्रस्त बच्चों में से एक तिहाई आबादी भारतीय बच्चों की है. भारत में पांच करोड 70 लाख बच्चे कुपोषण का शिकार हैं. विश्व में कुल 14 करोड 60 लाख बच्चे कुपोषणग्रस्त हैं. विकास की मौजूदा दर अगर ऐसी ही रही तो 2015 तक कुपोषण दर आधी कर देने का सहस्राब्दी विकास लक्ष्य 'एमडीजी' 2025 तक भी पूरा नहीं हो सकेगा. रिपोर्ट में भारत की कुपोषण दर की तुलना अन्य देशों से करते हुए कहा गया है कि भारत में कुपोषण की दर इथोपिया, नेपाल और बांग्लादेश के बराबर है. इथोपिया में कुपोषण दर 47 फीसदी तथा नेपाल और बांग्लादेश में 48-48 फीसदी है, जो चीन की आठ फीसदी, थाइलैंड की 18 फीसदी और अफगानिस्तान की 39 फीसदी के मुकाबले बहुत ज्यादा है. यूनिसेफ के एक अधिकारी के मुताबिक भारत में हर साल बच्चों की 21 लाख मौतों में से 50 फीसदी का कारण कुपोषण होता है. भारत में खाद्य का नहीं, बल्कि जानकारी की कमी ही विकास में रुकावट बन रही है. उनका यह भी कहना है कि अगर नवजात शिशु को आहार देने के सही तरीके के साथ सेहत के प्रति कुछ सावधानियां बरती जाएं तो भारत में हर साल पांच साल से कम उम्र के छह लाख से ज्यादा बच्चों को मौत के मुंह में जाने से बचाया जा सकता है.

देश की 32 फ़ीसदी आबादी ग़रीबी की रेखा के नीचे जीवन बसर कर रही है. हमारे देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं जो फसल काटे जाने के बाद खेत में बचे अनाज और बाजार में पडी ग़ली-सडी सब्जियां बटोरकर किसी तरह उससे अपनी भूख मिटाने की कोशिश करते हैं. महानगरों में भी भूख से बेहाल लोगों को कूडेदानों में से रोटी या ब्रेड के टुकडाें को उठाते हुए देखा जा सकता है. रोज़गार की कमी और गरीबी की मार के चलते कितने ही परिवार चावल के कुछ दानों को पानी में उबालकर पीने को मजबूर हैं. यह एक कडवी सच्चाई है कि हमारे देश में आजादी के बाद से अब तक गरीबों की भलाई के लिए योजनाएं तो अनेक बनाईर् गईं, लेकिन लालफीताशाही के चलते वे महज़ काग़ज़ों तक ही सिमटकर रह गईं. पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने तो इसे स्वीकार करते हुए यहां तक कहा था कि सरकार की ओर से चला एक रुपया ग़रीबों तक पहुंचे-पहुंचते पांच पैसे ही रह जाता है. एक तरफ़ गोदामों में लाखों टन अनाज सडता है तो दूसरी तरफ भूख से लोग मर रहे होते हैं. ऐसी हालत के लिए क्या व्यवस्था सीधे तौर पर दोषी नहीं है?

देश के सर्वाधिक गरीब दो हज़ार विकास खंडों में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों को हर महीने तीन रुपये की दर से 35 किलोग्राम खाद्यान्न अनाज दिए जाने का प्रावधान है. अगर सरकार गेहूं को सड़ाने के बजाय ग़रीबों को दिए जाने वाले अनाज की मात्रा बढ़ा दे या फिर अनाज को थोड़ा सस्ता कर दे तो कुछ और भूखों को रोटी मिल जाएगी. बढ़ती महंगाई ने निम्न आय वर्ग के लिए दो वक़्त की रोटी का भी संकट खड़ा कर दिया है.

कृषि मंत्री शरद पवार का कहना है कि एफसीआई ने गोदामों के निर्माण की जिम्मेदारी ली है और इसके लिए वह निविदा जारी कर रहा है. जिन गोदामों में अनाज सड़ रहा है, वहां भी उपयुक्त क़दम उठाए जाएंगे. हालांकि उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि अभी कुछ खाद्य वस्तुओं कीमतों में गिरावट नहीं आई है, लेकिन सरकार अपने स्तर पर महंगाई को कम करने का हरसंभव प्रयास कर रही है. उन्होंने यह भी कहा कि जन हित में आवश्यक वस्तुओं को अब भी वर्ष 2002 की क़ीमत पर बेचा जा रहा है.


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