आर बंदोपाध्याय
आर्थिक सुधार, जो 1980 के दशक में
शुरू किया गया और मौजूदा दशक में जिसे नयी दिशा दी गयी, के साथ भारतीय कोरपोरेट
क्षेत्र लगातार विकास कर रहा है और लगातार वैश्विक अर्थव्यवस्था का अभिन्न हिस्सा
बनता जा रहा है। जहां पिछली सहस्राब्दि के अंतिम दशक में विदेशी कंपनियों ने भारत
में खूब निवेश किया है वहीं नयी शहस्राब्दि के पहले दशक में भारतीय कंपनियों ने
विदेश में उल्लेखनीय निवेश किया है। इस दशक में संपोषणीय उच्चवृध्दि देखी गयी ।
कोरपोरेट क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था की वृध्दि का मुख्य वाहक बनता जा रहा है।
मौजूदा दशक में अल्पविकास, विषमता, संपोषणीयता एवं विषमता से जुड़ी
चुनौतियों पर राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तरों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
अतएव जहां एक तरफ कोरपोरेट क्षेत्र को अपनी वृध्दि को टिकाऊ बनाए रखने के लिए जरूरी
विनियामक एवं सेवा प्रदाय ढांचे की उम्मीद है वहीं दूसरी तरफ हितधारकों की यह मांग
लगातार बढती ज़ा रही है कि कोरपोरेट क्षेत्र का कामकाज समग्रतापूर्ण एवं जवाबदेह हो।
इसी संदर्भ में कोरपोरेट मंत्रालय अपनी सभी पहलों में हितधारकों की भागीदारी को
समुन्नत बनाने के लिए अपने कामकाज में एक बहुत बड़ा बदलाव लाया है।
पहले
स्तर पर मंत्रालय ने अपने कामकाज को निर्देशित करने के लिए दो आदर्शवाक्य अपनाए हैं
ताकि वह अपनी पहल का डिजायन तैयार करते वक्त कोरपोरेट क्षेत्र के साथ साथ हितधारक
की चिंताओं एवं आकांक्षाओं का भी ख्याल रख सके। ये दो आदर्शवाक्य हैं- उपयुक्त
विनियम के माध्यम से कोरपोरेट की वृध्दि तथा कोरपोरेट क्षेत्र एवं समग्र वृध्दि। इस
दिशा में मंत्रालय ने दिसंबर, 2009 में कोरेपोरेट शासन एवं कोरपोरेट सामाजिक
जिम्मेदारी पर स्वैच्छिक दिशानिर्देश तैयार कर उसे जारी किया। ये दिशानिर्देश
हितधारकों के साथ व्यापक विचार विमर्श के बाद तैयार किए गए। जहां कोरपोरेट शासन पर
स्वैच्छिक दिशानिर्देश में कंपनी के अंदरूनी शासन के मामले में मानक बढा दिए गए हैं
वहीं कोरपोरेट सामाजिक जिम्मेदारी पर दिशानिर्देश में कंपनियों को उसके कामकाज से
पड़ने वाले पर्यावरण एवं सामाजिक प्रभावों से जुड़ी चिंताओं के समाधान और समाज के
कल्याण में योगदान के लिए प्रोत्साहित किया गया है। इन स्वैच्छिक दिशानिर्देशों को
मानो या कारण बताओ सिध्दांत के साथ जारी किया गया है। मंत्रालय कोरपोरेट क्षेत्र
द्वारा इन सिध्दांतों को अपनाने के बाद होने वाले अनुभवों के आधार इन दिशानिर्देशों
की समीक्षा भी करेगा।
देश के संपूर्ण सामाजिक एवं आर्थिक विकास में
कोरपोरेट क्षेत्र की भूमिका को एक सही दिशा प्रदान करने के लिए मंत्रालय ने दिसंबर,
2009 में भारतीय कोरपोरेट सप्ताह मनाया था । इसका ध्येयवाक्य कोरपोरेट क्षेत्र एवं
समग्र वृध्दि था। कोरपोरेट सप्ताह के अंतर्गत देशभर में व्यापार एवं उद्योग मंडलों,
पेशेवर संस्थानों एवं अन्य संगठनों के साथ मिलकर उपरोक्त ध्येयवाक्य पर 124
कार्यक्रम आयोजित किए गए।
इन कार्यक्रमों के दौरान आम आदमी समेत हितधारकों
को जनता के आर्थिक एवं सामाजिक विकास के वास्ते मंत्रालय की पहलों, कोरपोरेट
क्षेत्र की भूमिका और उनके योगदानों से रूबरू कराया गया। इन कार्यक्रमों के माध्यम
से मंत्रालय विनियामक प्राधिकरणों, कोरपोरेट क्षेत्र, पेशेवरों और कई अन्य
हितधारकों को एक मंच पर लाने में सफल रहा ताकि वे साझे मुद्दों पर एक दूसरे के साथ
तालमेल कायम कर काम कर सकें।
हितधारकों को एक साथ लाने के लिए यह महसूस
किया गया कि आम आदमी को निवेश के बारे में उपयुक्त जानकारी देने के माध्यम से उसे
कोरपोरेट अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ना महत्वपूर्ण है। विभिन्न निवेश उपकरणों के
माध्यम से भारतीय लोगों की कोरपोरेट अर्थव्यवस्था में भागीदारी कुछ विकसित देशों की
तुलना में काफी कम है। जहां एक तरफ कोरपोरेट क्षेत्र को अपने विकास के लिए अधिक
निवेश की आवश्यकता है वहीं दूसरी तरफ भारतीय लोगों के पास काफी घरेलू बचत है जिसे
कोरपोरेट अर्थव्यवस्था निवेशित होने के लिए उपयुक्त चैनल नहीं मिल पाता है। इस दूरी
को खत्म करने के लिए मंत्रालय ने अपने कार्यक्रमों को पिछले वर्ष के 300
कार्यक्रमों से बढाक़र इस वर्ष 3000 कर दिया है । इस प्रकार मंत्रालय निवेशक
जागरूकता अभियान में तेजी लाया है।
मंत्रालय ने राष्ट्र निर्माण के इस
महत्वपूर्ण क्षेत्र पर राष्ट्र का ध्यान आकर्षित करने के लिए जुलाई , 2010 में कई
साझेदार संगठनों के साथ मिलकर भारत निवेशक सप्ताह आयोजित किया। इस सप्ताह का
ध्येयवाक्य काफी सोच समझकर सुशिक्षित निवेशक- राष्ट्र की संपत्ति रखा गया था। इन
साझेदार संगठनों में फिक्की, एसोचैम, अखिल भारतीय प्रबंधन परिसंघ, आंध्रप्रदेश
वाणिज्य एवं उद्योग मंडल, दक्षिणी भारत वाणिज्य एवं उद्योग मंडल, इंडियन मर्चेंट
चैम्बर, पीएचडी चैम्बर, आल इंडिया एसोसिएशन ऑफ इंडस्ट्रीज , बंबई स्टॉक एक्सचेंज,
इंस्टीटयूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया,, इंस्टीटयूट ऑफ कंपनी सेक्रेटीज ऑफ
इंडिया, इंस्टीटयूट ऑफ कोस्ट एंड वर्क्स एकाउंटेट्स ऑफ इंडिया, एमसीएक्स स्टॉक
एक्सचेंज, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज, भारतीय रिजर्व बैंक, भारतीय प्रत्याभूति एवं
विनिमय बोर्ड और यूटीआई म्यूच्यूअल फंड शामिल हैं।
पिछले दस महीनों में
उठाए गए इन कदमों के माध्यम से मंत्रालय ने अपने कामकाज को हितधारक उन्मुखी बनाने
के लिए अपने कामकाज को बदला है। हितधारकों को साथ् लेकर चलने की कारपोरेट क्षेत्र
की भूमिका से देश के सामाजिक एवं आर्थिक विकास की राह आसान हुई है ।