फ़िरदौस ख़ान
इंसान अपनी ज़िंदगी में क्या चाहता है, शायद वह ख़ुद भी नहीं जानता. ग़रीब दौलत चाहता है और अमीर सुकून के कुछ लम्हे. वह ख़ाली हाथ आता है और ख़ाली हाथ ही इस दुनिया से रुख्सत हो जाता है. वह कहां से आता है और कहां चला जा है, अमूमन दुनिया के सभी मज़हबों में इसका ज़िक्र किया गया है. फिर भी इंसान अपने हिसाब से कायनात के रहस्यों को जानने की कोशिश करता है. वह जानना चाहता है कि ज़िंदगी का लक्ष्य क्या है और ईश्वर ने उसे इस दुनिया में क्यों भेजा है? इन्हीं सवालों को उठाया गया है विश्व विख्यात लेखक डॉ. वेन डायर की किताब द शिफ्ट में. हिन्द पॉकेट बुक्स ने इस किताब का हिंदी रूपांतरण प्रकाशित किया है, जिसका नाम है लक्ष्य प्राप्ति. किताब में जीवन में लक्ष्य हासिल करने के सीक्रेट बताए गए हैं. किताब अंतरराष्ट्रीय बेस्ट सेलर रही है. अ़खबारों ने भी किताब को सराहा. वाशिंगटन पोस्ट ने लिखा-डॉ. वेन डायर की लेखनी सीख देती है कि सफलता मात्र एक संयोग नहीं है, यह हमारी सोच, विचार एवं योजना का सार्थक परिणाम है. इसी तरह न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा-जिज्ञासा से लेकर आत्मज्ञान तक की यात्रा कराने वाली यह विश्व की एक सुंदर पुस्तक है. ट्रिब्यून के मुताबिक़, मनुष्य को ईश्वर का अंश सिद्ध करने एवं ईश्वर में ही लीन होने की कला सिखाने वाली यह पुस्तक अपने आप में अनोखी है. हिलेरी क्लिंटन भी इस किताब के जादू से मुतासिर हुए बिना नहीं रह सकीं. उनका कहना है कि डॉ. वेन डायर सफलता से आत्मज्ञान का आभास कराने में माहिर हैं. इसी तरह मिशेल ओबामा कहती हैं, यह किताब आत्मोत्कर्ष एवं आंतरिक उन्नति के सरल नियमों का ख़ुलासा  करती है. बक़ौल लेखक, हम सब बिल्कुल महान ताओ या ईश्वर की तरह हैं और हमारे पास चुनाव की आज़ादी भी है. हमारे कुछ चुनाव, जो स्रोत से हमारे संपर्क को जो़डते हैं, वे दूषित और जर्जर हो गए हैं. उनमें से एक चुनाव यह मानता है कि हमारे भौतिक स्व से ईश्वर को प्रकट करना ही अंतिम बिंदु है. यह इस उपहार को प्रकट करने का अवसर नहीं है. इस प्रकार, हम ईश्वर को अपने से परे धकेल देते हैं और अहं पर आधारित जीवन जीने लगते हैं. इस दार्शनिक यात्रा में सीखने वाला सबक़ यही है कि हमें एक आध्यात्मिक जीवन के रूप में अपने अस्तित्व को पहचानना है, जो कि शाश्वत है और जन्म एवं मृत्यु दोनों से ही परे है. भौतिक आकार में मनुष्य की यात्रा ख़त्म होते ही वह फिर से अपने स्रोत से जा मिलता है. हम उस यात्रा में हैं, जिसके लिए लाओत्से ने ताओ ते चिंग के एक पद में कहा है- वापस लौटना ताओ की ही गति है. टीएस इलियट ने लिटिल गिडिंग में कुछ ऐसा ही कहा है-
हमें अपनी तलाश नहीं रोकनी चाहिए
और हमारी हर तलाश के अंत में
हम वहीं पहुंचेंगे, जहां से हम चले थे
और उस स्थान को पहली बार जानेंगे   

इससे पहले कि हम इस भौतिक शरीर को त्यागें और वापसी की इस यात्रा को पूरा करें, हम अपने स्रोत के जैसा होने की कल्पना करते हैं, उसके ही जैसा बनने का प्रयत्न करने हुए अपने मूल स्वभाव को समझने की कोशिश शुरू कर सकते हैं. हमें किसी न किसी रूप में अपने उस स्रोत को कल्पना की दृष्टि से स्पष्ट रूप में देखना एवं सीखना होगा, जानना होगा कि वह कैसे सोचता है, महसूस करता है या फिर व्यवहार करता है. अपने स्रोत के बारे में यह जानने पर ही हम अपने असली रूप को जान सकेंगे. मैं कहां से आया? इस उत्तर को जानने में यह भी शामिल है कि हम बाक़ी सभी बातों से परे जाकर एक ऐसे नज़रिये के साथ जीने लगें, जो कि हमारे मूल स्वभाव से मेल खाता हो. हमें निश्चित रूप से अपने स्रोत की आध्यात्मिक प्रकृति जैसा बनना चाहिए. उस दिव्य चेतना के भाव को पहचान कर, जो कि हमारा भौतिक स्व ही है, बदले में हम यह चुनाव कर पाते हैं कि उस दिव्य आत्मा को कैसे प्रकट किया जाए? आध्यात्मिक अंश से ही उपजने के बावजूद हमारा भौतिक जगत बहुत अधिक आध्यात्मिक नहीं जान पड़ता. हेनरी वड्सवर्थ लांगफैलो ने अपनी कविता जीवन का संगीत में इसी दुविधा का ज़िक्र किया है-
जीवन यथार्थ है, जीवन सच्चाई है
और क़ब्र ही उसका लक्ष्य नहीं है
ऐ धूल, तुझे धूल में ही आ मिलना है
आत्मा से यह नहीं कहा गया था

यदि आत्मा ही हमारा सच्चा सार है और हम यह विश्वास रखते हैं कि हम वहीं से आए हैं, तब तो मुझे लगता है कि स्वयं को अपने इस प्रामाणिक अंश से जोड़ पाना इतना मुश्किल नहीं होगा. दरअसल, इस काम को करने का एक तरीक़ा यह भी हो सकता है कि हमारी कल्पना में हमारा रचनात्मक स्रोत कोई आकार लेने के बाद जिस तरह सोचता है और कार्य करता है, हम ख़ुद भी अपने विचारों एवं कर्मों को उसी दिशा में मोड़ लें. हमें ख़ुद को काफ़ी तक वैसा ही बनाना है, जैसे कि हमारी आत्मा है. चूंकि हम वहीं से आए हैं, भले ही हमने वर्षों से इसे अनदेखा किया हो, लेकिन यह दिव्यता ही हमारा भाग्य है. ताओ या महान ईश्वर, जिसके हम सभी एक अंश हैं, वह बड़ी व्यग्रता से प्रतीक्षा कर रहा है कि हम भी उसके जैसे बन जाएं. मैं कल्पना करता हूं कि यदि सब कुछ रचने वाली आत्मा को सचमुच हमें पाने की चाह है, तो हमें ख़ुद ही इसका एहसास करा देगी. ज़िंदगी में सुकून की बहुत अहमियत है. कहावत भी है कि जब आए संतोष धन, सब धन धूरि समान. शेक्सपियर ने भी कहा है-
मेरा मुकुट तो मेरे हृदय में है, मेरे सिर पर नहीं
यह हीरों और भारतीय जवाहरातों से नहीं जड़ा
न ही दिखता है, मेरा मुकुट संतोष कहलाता है
ऐसा एक मुकुट, जिसका आनंद कोई राजा ही ले पाता है

 अपनी इस किताब में वह सेवा को महत्व देते हुए मदर टेरेसा को अपना आदर्श बताते हैं, जिन्होंने अपनी सारी उम्र सेवा कार्य में गुज़ार दी. उन्होंने कहा था-प्यार अपने आप में अकेला हो ही नहीं सकता. तब इसका कोई मक़सद ही नहीं रह जाता है. प्यार का असली ज्ञान तभी होगा, जब आप इसे सेवा से जोड़ेंगे. इसी तरह जाने माने सूफ़ी कवि रूमी ने कहा था-अगर तुम पूरे दिन में प्रार्थना का एक ही शब्द मुंह से निकालते हो, तो वह शुक्रिया ही होना चाहिए. बेशक, यह किताब इंसान को आत्मविश्लेषण के लिए प्रेरित करते हुए उसे आत्मज्ञान का महान सबक़ पढ़ाती है. आज की भागदौड़ की ज़िंदगी में यह किताब सुकून के बहुत से लम्हे मुहैया कराती है. उम्मीद है कि पाठकों को भी यह किताब बेहद पसंद आएगी.

समीक्ष्य कृति : लक्ष्य प्राप्ति
लेखक: डॉ. वेन डायर
प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स
क़ीमत : 150 रुपये


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