स्टार न्यूज़ एजेंसी 
हाइपोथर्मिया के मरीज में कंपकंपी के लक्षण न दिखने का मतलब है स्थिति गंभीर होना. ऐसे में मरीज को तुरंत बेहतर इलाज की जरूरत होती है. यह कहना है हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. केके अग्रवाल का. वह कहते हैं कि हाइपोथर्मिया की स्थिति तब होती है, जब व्यक्ति के शरीर का तापमान 35 डिग्री सेंटीग्रेड से नीचे या 95 डिग्री फारेनहाइट से कम हो जाए. लक्षणों के हिसाब से इसकी गंभीरता का अंदाजा लगाया जा सकता है.
1. हल्का हाइपोथर्मिया : इसमें शरीर का तापमान 90 से 95 डिग्री फारेनहाइट के बीच होता है. इसके लक्षणों में भ्रम, दिल की धड़कन बढऩे के साथ ही कंपकंपी भी बढ़ जाती है.
2. मध्यम हाइपोथर्मिया : इसमें तापमान 82 से 90 डिग्री फारेनहाइट के बीच होता है और इस हालत में व्यक्ति के दिल की धड़कने धीमी हो जाती है, पल्स रेट अनियमित होने के साथ ही आंखों के सामने धुंधलापन व कंपकंपी कम या गायब हो जाती है.
3. गंभीर हाइपोथर्मिया : इसमें तापमान 82 डिग्री फारेनहाइट से कम हो जाता है. साथ ही इसमें कोमा, ब्लड प्रेशर में कमी, पल्स का अनियमित होना और रिजिडिटी जैसे लक्षण सामने आते हैं.

वजह
हाइपोथर्मिया होने की वजहों में ठंड में बिना कपड़ों के बाहर निकलना, बहुत ठंडे पानी का इस्तेमाल, चिकित्सीय स्थिति जैसे कि हापोथाइरॉयडिज्म, सेप्सिस, एथनॉल जैसे टॉक्सिन और ओरल एंटीडायबीटीज जैसी दवाओं का गलत इस्तेमाल आदि. सबसे ज्यादा खतरा बुजुर्गों को होता है. उनके शरीर का तापमान अनियमित हो जाता है.  

कैसे करें जांच
इसकी जांच लो रीडिंग थर्मामीटर से शरीर का तापमान मापकर की जाती है, जो कि मानक तापमान से तय किया जाता है और यह थर्मामीटर 93 डिग्री फारेनहाइट तक होता है. रेक्टल और ईसोफेगल तापमान होने का मतलब है स्थिति गंभीर होना. मरीज में लैक्टिक एसिडोसिस, ब्लीडिंग और संक्रमण आदि की जांच के लिए लैब टेस्ट की जरूरत होती है. गंभीर हाइपोथर्मिया में डिसरिद्मिया और इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम इंटरवल जैसी दिक्कतें भी हो सकती हैं.

प्राथमिक उपचार
हाइपोथर्मिया के मरीज के शरीर को सबसे पहले गर्माहट देने और उसे हुई तकलीफ की स्थिति जानने की कोशिश करना जरूरी होता है. अगर श्वास नली से संबंधित दिक्कत हुई हो, तो एंडोट्रेकियल इंट्यूबेशन की जरूरत होती है. गंभीर हाइपोथर्मिया बहुत जल्द हाइपोटेंसिव में बदल सकता है. हाइपोथर्मिया की हल्की स्थिति में बाहर से गर्माहट देकर मरीज को सामान्य किया जा सकता है, लेकिन गंभीर स्थिति में इसके और विकल्प अपनाने की जरूरत होती है.

1. मरीज के शरीर पर गीले कपड़े हों तो हटा दें.
2. उसे कम्बल से ढक दें.
3. कमरे का तापमान 24 डिग्री सेंटीग्रेड यानी 75 डिग्री फारेनहाइट के आसपास रखें.
4. मध्यम से गंभीर किस्म के हाइपोथर्मिया के मरीजों में बाहर से भी गरमी देते रहें. इसमें गर्म कम्बल, रेडिएंट हीट या गर्म हवा जो सीधे मरीज को छुए.
5. सबसे पहले मरीज को गर्माहट दें. इसके बाद हाइपोटेंशन और आर्टरियल वेसोडिलेशन जैसी तकलीफ को कम करने का उपाय करें.
6. गंभीर हाइपोथर्मिया में कम इनवेसिव रिवॉर्मिंग तकनीक का इस्तेमाल करें (जैसे कि वॉम्र्ड आईवी क्रिस्टलॉइड) जरूरत पडऩे पर धीरे-धीरे तकनीक में बदलाव लाएं.

कार्डियोपल्मनरी रीससिटेशन (सीपीआर) तब तक जारी रखना चाहिए, जब तक मरीज के शरीर का तापमान 30 से 32 डिग्री सेल्सियस यानी 86 से 90 फारेनहाइट तक न हो जाए. इसके साथ जरूरी दवाएं भी दी जानी चाहिए.

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