फ़िरदौस ख़ान
समाज में वहशी दरिन्दे खुलेआम घूम रहे हैं. कब हादसा हो जाए, कुछ नहीं कहा जा सकता. पहले 16  दिसंबर 2002 को निर्भया के साथ दरिन्दगी हुई. देश इस दिल दहला देने वाले हादसे से उबरा भी नहीं था कि  एक फ़रवरी, 2015 को हरियाणा के रोहतक में रह रही नेपाली महिला के साथ दरिन्दगी की गई. अदालत ने दरिन्दों को मौत की सज़ा सुनाकर समाज को एक संदेश दिया कि किसी भी दरिन्दो को बख़्शा नहीं जाएगा.

हरियाणा की रोहतक ज़िला सत्र अदालत ने 21 दिसंबर को मानसिक अक्षम नेपाली महिला से बलात्कार और बेहरहमी से उसका क़त्ल करने के सात दोषियों को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत फांसी की सज़ा सुनाई. इसके अलावा सामूहिक दुष्कर्म मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 376 डी व साथ में 120 बी के तहत उम्रक़ैद और 50 हज़ार रुपये जुर्माना, धारा 366 व साथ में 120 बी के तहत दस साल की सज़ा व 20 हज़ार रुपये जुर्माना किया गया है. धारा 201 के तहत सभी दोषियों को सात साल की सज़ा और 20 हज़ार रुपये जुर्माना किया गया है, जबकि धारा 377 के तहत राजेश उर्फ़ घोचड़ू को उम्रक़ैद व 50 हज़ार रुपये जुर्माने की सज़ा सुनाई गई है.

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सीमा सिंघल ने इस मामले में फ़ैसला सुनाते हुए कहा कि सभ्यता जितनी आगे बढ़ी है, दिमाग़ी रूप से पीछे गई है. इस फ़ैसले के ज़रिये समाज को संदेश देना है कि औरत कमज़ोर नहीं है, औरत को अपनी पहचान व निजता पर गर्व है. शर्मिंदगी औरतों के लिए नहीं है, बल्कि उन मर्दों के लिए है, जिन्होंने यह जुर्म किया है. इस तरह के जुर्म शरीर पर नहीं, आत्मा पर चोट पहुंचाते हैं. यह फ़ैसला आत्मा के घाव मिटाने की कोशिश है. इसके बाद सातों दोषियों को फांसी की सज़ा सुनाते हुए जज ने क़लम तोड़ दी.

ग़ौरतलब है कि रोहतक ज़िले के गड्डी खेरा गांव में हुए इस ख़ौफ़नाक हादसे में दोषियों ने पीड़िता के साथ सामूहिक बलात्कार करने के बाद पत्थरों से पीट पीटकर उसका क़त्ल कर दिया था. इस मामले में कुल नौ आरोपियों के नाम सामने आए. इनमें से 22 वर्षीय सोमबीर आठवां आरोपी था, जो फ़रार था. उसने कुछ महीने पहले दिल्ली के बवाना इलाक़े में ख़ुदकशी कर ली थी. एक नाबालिग़ होने की वजह से उसका मामला किशोर अदालत में ट्रांसफर कर दिया गया. नेपाली मूल के इस नाबालिग़ को हिसार के बाल सुधार गृह में रखा गया है.
इस मामले में अभियुक्तों के ख़िलाफ़ सात सितंबर को फ़ास्ट ट्रैक अदालत में मामले तय किया गया था. इसमें 57 प्रत्यक्षर्दिशयों की गवाही हुई. 18 दिसंबर को इन सात लोगों को दोषी पाया गया. पीड़िता का पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टरों का कहना था कि पीड़िता के साथ अमानवीय व्यवहार किया गया है. सामूहिक बलात्कार के बाद और मौत से पहले उसे शारीरिक यातनाएं दी गई थीं. इसके बाद ऑटोप्सी रिपोर्ट से भी ज़ाहिर हुआ था कि पीड़िता के सिर, छाती, जांघ और यौन अंगों पर गहरे ज़ख़्म के कई निशान थे.

अभियुक्तों के वकील डॉ. दीपक भारद्वाज का कहना है कि वह इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपील करेंगे. वहीं, पीड़िता की बहन जानकी ने कहा कि अब गुनाहगार बेशक हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक जाएं, वह अपनी बहन के लिए इंसाफ़ की लड़ाई लड़ती रहेंगी. उन्होंने यह भी कहा कि वह अपनी बहन की पहचान नहीं छिपाएंगी और माननीय न्यायाधीश को भी यही कहा था कि उनकी बहन गुमनामी की मौत नहीं मरेगी.  उन्मृहोंने कहा कि उन्हें तब ही संतुष्टि मिलेगी, जब दोषियों को फांसी होगी.


ग़ौरतलब है कि 28 वर्षीय पीड़िता मूल रूप से नेपाल की थी और रोहतक में अपनी बहन के परिवार के साथ रहती थी. वह एक फ़रवरी, 2015 को अपने घर से लापता हो गई और उसका क्षत-विक्षत शव चार फ़रवरी को बहू अकबर गांव में मिला था. रोहतक के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक शशांक आनंद ने इस मामले के सभी अभियुक्तों को 9 फ़रवरी को हिरासत में ले लिया. इसमें एक नेपाली युवक संतोष के अलावा राजेश उर्फ़ गुचाडू, सुनील उर्फ़ शीला, सरवर उर्फ़ बिल्लू, मनबरी, सुनील उर्फ़ माधा, पवन और प्रमोद उर्फ़ पदम शामिल थे.

ग़ौरतलब है कि इस मामले में अदालत ने बेहद संजीदगी से काम करते हुए तेज़ी से कार्रवाई की. न्यायाधीश ने मामले को फास्ट ट्रायल पर रखते हुए 15 अक्टूबर के बाद लगातार गवाही सुनी. महज़ दो माह तीन दिन में 57 गवाहियां पूरी हो गईं. देर शाम तक काग़ज़ी काम निपटाया गया. आरोपियों को दोषी ठहराए जाने के बाद न्यायाधीश और उनका स्टाफ़ शनिवार और रविवार दोनों दिन काम में जुटा रहा.

आरोपियों के गिरफ़्तार होने के बाद ज़िला बार एसोसिएशन ने फ़ैसला लिया था कि कोई भी वकील आरोपियों की तरफ़ से पैरवी नहीं करेगा. हालांकि, न्यायिक प्रक्रिया के तहत डॉ. दीपक भारद्वाज को आरोपियों की तरफ़ से वकील नामित किया गया. इस मामले में पीड़िता की ओर से तीन वकीलों ने पैरवी की. नेपाली युवती के हत्यारों की गिरफ़्तारी की मांग को लेकर नेपाली एकता मंच, विभिन्न सामाजिक संगठनों, शिक्षकों, विद्यार्थियों ने सड़क पर उतरकर दोषियों को गिरफ़्तार करने और उन्हें सज़ा देने की मांग की थी.

अब देखना ये है कि अपील के बाद ऊपरी अदालतें क्या फ़ैसला सुनाती हैं. अगर उन अदालतों ने भी इन दरिन्दों की फांसी की सज़ा को बरक़रार रखा, तो इससे जहां पीड़िता इंसाफ़ मिलेगा वहीं दरिन्दों को को भी उनके किए की सज़ा मिल जाएगी. इससे समाज में ये संदेश जाएगा कि कोई भी अपराधी अपराध करके बच नहीं सकता है.

ईद मिलाद उन नबी की मुबारकबाद

ईद मिलाद उन नबी की मुबारकबाद

फ़िरदौस ख़ान की क़लम से

Star Web Media

ई-अख़बार पढ़ें

ब्लॉग

एक झलक

Followers

Search

Subscribe via email

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

साभार

इसमें शामिल ज़्यादातर तस्वीरें गूगल से साभार ली गई हैं