बे-लुत्फ़ सा है अंदर, बाहर तिरे बग़ैर।
झुकता नहीं कहीं पर, यह सर तिरे बग़ैर।
काबा-ए दिल है वीराँ, दिलबर तिरे बग़ैर।
होगा नहीं वहाँ जब, दीदार आप का,
सूना रहेगा रब का, महशर तिरे बग़ैर।
बुत में जो तू न होता, ऐ नूरे-अहमदी,
आदम में हम न रहते, दम भर तिरे बग़ैर।
मुझ में तू जल्वागर है, मेरे ही नाम से,
लेकिन अमीर दिल है, मुज़्तर तिरे बग़ैर।
हमराह तू नहीं तो, बाग़े-जिनाँ के भी,
बे-नूर होंगे सारे, मंज़र तिरे बग़ैर।
क़ायम रहेगी मस्ती, दोनों जहान में,
अर्क़े-"बहार" पी है, साग़र तिरे बग़ैर।
-डॉ. बहार चिश्ती नियामतपुरी
5 सितम्बर 2025