मोहम्मद रफीक चौहान
एक समय हरियाणा के इतिहास में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। यही नहीं दसवीं सदी में इस हिस्से पर उनके शासन के बाद ही यह क्षेत्र हरियाणा के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
आज हरियाणा, पंजाब, यमुना पार सहारनपुर, मुजफ्फरनगर के लगभग सभी चौहान राजपूत राणा हर राय और उनके सगे सम्बन्धियों के वंशज हैं। यही नहीं गुर्जर, जाट, रोड, जातियों में जो चौहान वंश हैं। उन सबके पूर्वज भी क्षत्रिय राजपूत राणा हर राय चौहान को माना जाता है। जो राणा हर राय चौहान अथवा उनके पुत्रों के उस समय उन जातियों की महिलाओं से अंतरजातीय विवाह से उत्पन्न संतान के वंशज हैं। जिनसे उन जातियों में चौहान वंश का प्रचलन हुआ।
राणा हर राय चौहान का हरियाणा
यह ऐतिहासिक कहानी है। दसवीं सदी की है, जब हरियाणा के उत्तर पूर्वी भाग पर चौहानों का राज्य स्थापित हुआ। नीमराना के चौहानों और पुण्डरी (करनाल, कैथल) के पुंडीर राजपूतों के बीच हुए रक्तरंजित युद्ध इसका इतिहास गवाह है। यह ऐतिहासिक कहानी आपको हरियाणा के उस स्वर्णिम काल में ले जाएगी जब यहां क्षत्रिय राजपूतों का राज था। यानी अंग्रेजों और मुगलों के समय से भी पहले .
नीमराणा के राणा हर राय चौहान संतानहींन थे। राज पुरोहितों के सुझाव के पश्चात राणा हर राय गंगा स्नान के लिए हरिद्वार के लिए निकले। लौटते हुए उन्होंने एक रात करनाल के पास के क्षेत्र में खेमा लगाया। उस क्षेत्र का नाम बाद में जा कर जुंडला पड़ा क्यूंकि यहां जांडी के पेड़ उगते थे। राणा जी और उनकी सेना इस इलाके की उर्वरता व हरयाली देख कर मोहित हो गये। उनके पुरोहितों ने उन्हें यहीं राज्य स्थापित करने का सुझाव दिया क्यूंकि पुरोहितों को यह भूमि उनके वंश की वृद्धि के लिए शुभ लगी।
उस समय यह क्षेत्र पुंडीर क्षत्रियों के पुण्डरी राज्य के अंतर्गत था। विक्रमसम्वत 602 में यह राज्य राजा मधुकर देव पुंडीर जी ने बसाया था। राजा मधुकर देव जी का शासन तेलंगाना में था, वे अपने सैनिकों के साथ तेलांगना से कुरुक्षेत्र ब्रह्मसरोवर में स्नान के लिए आये थे। तब यहां के रघुवंशी राजा सिन्धु ( जो की हर्षवर्धन के पूर्वज हो सकते हैं) ने आपने बेटी अल्पदे का विवाह उनसे किया और दहेज़ में कैथल करनाल का इलाका उन्हें दिया।
राजा मधुकर देव पुंडीर ने यही पर अपने पूर्वज के नाम पर पुण्डरी नाम से राजधानी स्थापित की, बाद में उनके वंशजों ने यहां चार गढ़ स्थापित किये जो कि पुण्डरी, पुंडरक, हावडी, चूर्णी (चूर्णगढ़) के नाम से जाने गए‌। हर्षवर्धन के पश्चात् सन 712 ईसवीं के आसपास पुंडीर क्षत्रिय (राजपूतों) ने यमुना पार सहारनपुर और हरिद्वार क्षेत्र पर भी कब्जा कर 1440 गाँव पर अपना शासन स्थापित किया।
पुंडीर राज्य के दक्षिण पश्चिम में मंडाड क्षत्रिय राजपूतों का शासन था जोकि यहां मेवाड़ से आये थे और राजोर गढ़ के बड़गुजरों की शाखा थे। उनके एक राज़ा जिन्द्रा ने जींद शहर बसाया और इस क्षेत्र में राज किया। इन्होने चंदेल और परमार राजपूतों को इस इलाके से हराकर निकाल दिया और घग्गर नदी से यमुना नदी तक राज्य स्थापित किया। चंदेल उत्तर में शिवालिक पहाड़ियों की तराई में जा बसे।(यहां इन्होने नालागढ़ (पंजाब) और रामगढ़ ( पंचकुला, हरियाणा) राज्य बसाये ), वराह परमार राजपूत सालवन क्षेत्र छोडकर घग्घर नदी के पार पटियाला जा बसे। जींद ब्राह्मणों को दान देने के बाद मंढाडो ने कैथल के पास कलायत में राजधानी बसाई व घरौंडा , सफीदों ,राजौंद और असंध में ठिकाने बनाये। मंडाड क्षत्रिय राजपूतों का कई बार पुंडीर राज्य से संघर्ष हुआ पर उन्हें सफलता नहीं मिली।
गंगा स्नान से लौटते वक्त राणा हर राय चौहान थानेसर पहुंचे तथा पुरोहितो के सुझाव पर पुंडीरों से कुछ क्षेत्र राज करने के लिए भेंट में माँगा। पुंडीरों ने राणा जी की मांग ठुकराई और क्षत्रिये धर्म निभाते हुए विवाद का निर्णय युद्ध में करने के लिए राणा हर राय देव को आमंत्रित किया। जिसे हर राय देव ने स्वीकार किया।
ऐसा कहा जाता है कि मंडाड राजपूतों ने चौहानों का इस युद्ध में साथ दिया। पुंडीर सेना पर्याप्त शक्तिशाली होने के कारण प्रारम्भ में हर राय को सफलता नहीं मिली मात्र पुण्डरी पर वो कब्जा कर पाए, राणा हर राय ने हार नजदीक देख नीमराणा से मदद बुलवाई।
नीमराणा से राणा हर राय चौहान के परिवार के राय दालू तथा राय जागर अपनी सेना के साथ इस युद्ध में हिस्सा लेने पहुंचे। नीमराणा की अतिरिक्त सेना और मंडाड राज्य की सेना के साथ मिलने से क्षत्रिय राजपूत राणा हर राय चौहान की स्थिति मजबूत हो गयी और चौहानों ने फिर हावडी, पुंड्रक को जीत लिया, अंत में पुंडीर राजपूतों ने चूर्णगढ़ किले में अंतिम संघर्ष किया और रक्त रंजित युद्ध के बाद इस किले पर भी राणा हर राय चौहान का कब्ज़ा हो गया।
इसके बाद बचे हुए पुंडीर क्षत्रिय (राजपूत) यमुना पार कर आज के सहारनपुर क्षेत्र में आये और कुछ समय पश्चात् उन्होंने दोबारा संगठित होकर मायापुरी (हरिद्वार) को राजधानी बनाकर राज्य किया,बाद में इस मायापुरी राज्य के चन्द्र पुंडीर और धीर सिंह पुंडीर क्षत्रिय राजपूत सम्राट पृथ्वीराज चौहान के बड़े सामंत बने और सम्राट द्वारा उन्हें पंजाब का सूबेदार बनाया गया, यह मायापुर राज्य हरिद्वार, सहारनपुर, मुजफरनगर तक फैला हुआ था। बाद में युद्ध की कटुता को भूलाते हुए चौहानों और पुंडीरो में पुन वैवाहिक सम्बन्ध होने लगे।
पुंडीर राज्य पर जीत के बाद राणा हर राय ने राय डालु को 48 गांव की जागीर भेंट की जो की आज के नीलोखेड़ी के आसपास का इलाका था। जागर को 12 गांव की जागीर यमुनानगर के जगाधरी शहर के पास मिली तथा हर राय के भतीजे को टोंथा के ( कैथल ) आस पास के 24 गांव की जागीर मिली। राणा हर राय देव ने जुंडला से शासन किया।
इन्हीं के नाम पर इस इलाके का नाम हरियाणा पड़ा जिसका मतलब वो स्थान जहा हर राय राणा के वंशज राज्य करते थे।
(हर राय राणा = हररायराणा = हररायणा = हरियाणा)। परन्तु आजादी के बाद इसका अर्थ राजपूत विरोधी जातियों ने हरी का आना बना दिया जबकि हरी तो हमेशा से उत्तर प्रदेश में ही अवतरित हुए है, हरियाणा तो हरी की कर्म भूमि थी।
राणा हरराय चौहान और उनके चौहान सेना के वंशज आज हरयाणा के अम्बाला पंचकुला करनाल यमुनानगर जिलो के 164 गाँवो में बसते है। रायपुर रानी (84 गाँव की जागीर) इनका आखिरी बचा बड़ा ठिकाना है जो की आजादी के बाद तक भी रहा। हालाकिं इन चौहानो कई छोटी जागीरे चौबीसी के टिकाइओ के नीचे बचीं रहीं जैसे उनहेरी, टोंथा, शहजादपुर, जुंडला, घसीटपुर आदि जो बाद में अंग्रेजो के शासन के अंतर्गत आ गयी। इन चौहानों की एक चौबीसी यमुना पार मुज़्ज़फरनगर जिले में भी मिलती है। 
कलस्यान गुर्जर भी खुद को इसी चौहान वंश की शाखा मानते है, (मुजफरनगर गजेटियर पढ़े). राणा हर राय देव के एक वंशज राव कलस्यान ने गुज्जरी से विवाह किया जिनकी संतान ये कलसियान गुज्जर है। ये गुज्जर आज चौहान सरनेम लगाते है और इनके 84 गांव मुज़्ज़फरनगर के चौहान राजपूतों के 24 गाँव के साथ ही बसे हुए है।
राणा हर राय चौहान ने दूसरी जातियों जैसे जाट ,रोड़ , नाई ,जोगन जातियों की लड़कियों से भी वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये। कुरुक्षेत्र के पास के अमीन गाँव चौहान रोड़ इन्हीं के वंशज माने जाते है। लाकड़ा जाट या चौहान जाट भी इन्हीं चौहानो के वंशज माने जाते है। नाई व जोगन बीविओं की संताने आज सोनीपत और उत्तर प्रदेश के घाड के आसपास के इलाके में बसते है इन्हे खाकी चौहान कहा जाता है जिनमे शुद्ध रक्त के राजपूत विवाह नहीं करते।
राणा हर राय के वंशज राणा शुभमल के समय अंबाला, करनाल क्षेत्र में चौहानों के 169 गाँव थे। शुभमल के पुत्र त्रिलोक चंद को 84 गाँव मिले जबकि दुसरे पुत्र मानक चंद को 85 गाँव मिले । त्रिलोक चंद की आठवी पीढ़ी में जगजीत हुए जो गुरु गोविंद सिंह के समय बहुत शक्तिशाली थे। 1756 में जगजीत के पोते फ़तेह चंद ने अपने दो पुत्रों भूप सिंह और चुहर सिंह के साथ अहमद शाह अब्दाली का मुकाबला किया जिसमे अब्दाली की विशाल शाही सेना ने कोताहा में धोखेे से घेरकर 7000 चौहानों का नरसंहार किया। हरियाणा के चौहान आज भी बहुत स्वाभिमानी है और अपने इतिहास पर गर्व करते है। हरियाणा में क्षत्रिय (राजपूतों) की जनसँख्या और प्रभुत्व आज नगण्य सा हो गया है।
राणा हर राय देव चौहान की छतरी आज भी जुंडला गाँव (करनाल) में मौजूद है। पर ये दुःख की बात यहाँ के चौहान राजपूत अपने वीर पूर्वज की शौर्य गाथा को भूलते जा रहे है और हरियाणा में आज तक राणा हर राय देव के नाम पर कोई संग्रहालय मूर्ति या चौक नहीं स्थापित किये गए। हम आशा करते है इस पोस्ट को पढ़ने के बाद राणा हर राय देव चौहान को उनको वंशज यथा संभव सम्मान दिलवा पाएंगे। 
(लेखक डिस्ट्रिक्ट कोर्ट करनाल में एडवोकेट, लॉ बुक लेखक और क़ानूनी सलाहकार हैं) 


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