उसके गाँव के नक्शे में कोई सराफा बाजार नहीं खुलता
बस एक कोरिया का पेड़ खड़ा है
जो बार-बार
उसके सपनों में आकर
अपनी झुर्रीदार डालों से
दादी की हथेली-सा आश्रय देता है।
वह दो साधारण फूल
अपनी लटों में सजा लेती है—
और उसी क्षण
पूरी चाँदनी
जंगल के कानों तक झुमकियों-सी झनक उठती है।
-जयप्रकाश मानस
