खिलने लगे है गांव के
कच्चे रास्तों के आसपास
कास के शुभ्र श्वेत फूल
पावस के अवसान
और शरद ऋतु के आगमन की
शंखध्वनि करते हुए
शरद पूर्णिमा की रात जैसे
उजले
हवा के साथ कुलांचे भरते
मृगछौनो से मासूम
और रूई के फाहों से कोमल
इन फूलों को दूर से देखो
तो एक अनिर्वचनीय शांति उतर जाय
मन के कोने कोने में
और कहीं छू लो उन्हें
तो दौड़ जाय विद्युत वेग की तरह
एक अजानी गुदगुदी तन बदन में
एकदम प्यार की पहली दृष्टि
और पहले स्पर्श की तरह ही होते हैं
कास के ये फूल।
-ध्रुव गुप्त
कच्चे रास्तों के आसपास
कास के शुभ्र श्वेत फूल
पावस के अवसान
और शरद ऋतु के आगमन की
शंखध्वनि करते हुए
शरद पूर्णिमा की रात जैसे
उजले
हवा के साथ कुलांचे भरते
मृगछौनो से मासूम
और रूई के फाहों से कोमल
इन फूलों को दूर से देखो
तो एक अनिर्वचनीय शांति उतर जाय
मन के कोने कोने में
और कहीं छू लो उन्हें
तो दौड़ जाय विद्युत वेग की तरह
एक अजानी गुदगुदी तन बदन में
एकदम प्यार की पहली दृष्टि
और पहले स्पर्श की तरह ही होते हैं
कास के ये फूल।
-ध्रुव गुप्त
