सुरमई शाम पे बिखरा था अभी रंगे शफ़क
ज़ेहन से महव थे कितने ही परेशान सवाल
पुरसुकूँ वक़्त में धुन्धला सी गई थी दहशत
गुम हुए जाते थे दिल तोड़ते लम्हों के ख़्याल।
सामने धीमे से उतरी है सियह रात अभी
इक घने पेड़ के पीछे हुआ रौशन महताब।
हर नए पल में बदलते हुए कुछ मनज़र हैं
चाँद है या कि खुली है कहीं जादूई किताब।
चौदहवीं रात का शफ़्फ़ाफ़ चमकता हुआ चाँद
आसमाँ ता बा ज़मीं नूर का बहता दरिया।
जैसे चुपके से हरेक शय पे कोई 'इस्म' पढ़े
और कुछ देर में हो जाए सुनहरी दुनिया।
-शमीम ज़हरा
ज़ेहन से महव थे कितने ही परेशान सवाल
पुरसुकूँ वक़्त में धुन्धला सी गई थी दहशत
गुम हुए जाते थे दिल तोड़ते लम्हों के ख़्याल।
सामने धीमे से उतरी है सियह रात अभी
इक घने पेड़ के पीछे हुआ रौशन महताब।
हर नए पल में बदलते हुए कुछ मनज़र हैं
चाँद है या कि खुली है कहीं जादूई किताब।
चौदहवीं रात का शफ़्फ़ाफ़ चमकता हुआ चाँद
आसमाँ ता बा ज़मीं नूर का बहता दरिया।
जैसे चुपके से हरेक शय पे कोई 'इस्म' पढ़े
और कुछ देर में हो जाए सुनहरी दुनिया।
-शमीम ज़हरा
ایک اسم
سرمئی شام پے بکھرا تھا ابھی رنگ شفق
ذہن سے محو تھے کتنے ہی پریشان سوال
پرسکوں وقت میں دھندلا سی گئی تھی دہشت
گم ہوئے جاتے تھے دل توڑتے لمحوں کے خیال
سامنے دھیمے سے اتری تھی سیاہ رات ابھی
اک گھنے پیڑ کے پیچھے ہوا روشن مہتاب
ہر نئے پل میں بدلتے ہوئے کچھ منظر ہیں
چاند ہے یا کہ کھلی ہے کوئی جادوئی کتاب
چودہویں رات کا شفاف چمکتا ہوا چاند
آسماں تا بہ زمیں نور کا بہتا دریا
جیسے چپکے سے ہر اک شئے پے کوئی اسم پڑھے
اور کچھ دیر میں ہو جائے سنہری دنیا
شمیم زہرا
