शराफ़त अली ख़ान
मुझे याद पड़ता है कि करीब 35 वर्ष पूर्व " सारिका" में मैंने पहले-पहल विकेश निझावन की चर्चित कहानी "जाने और लौट आने के बीच" पढ़ी थी ।तब सारिका अपने पूरे यौवन पर थी और साहित्य जगत में उन दिनों एक कहावत प्रचलित थी कि "सारिका" में  छपना साहित्य-जगत में स्थापित होने जैसा है।"
बाद में फिर कई श्रेष्ठ का पत्रिकाओं में मैंने विकेश निझावन की कहानियां देखीं, पढ़ीं। "अंधेरे "कहानी मेरी पसंदीदा कहानी रही है। इसे मैंने कई बार पढ़ा है। कहानी का सिरा  जितनी सहजता से आगे बढ़ता है, अंत में आते-आते उतना ही अचंभित कर देता है कि पाठक पर कहानी का असर कई दिनों तक बना रहता है।

"छुअन तथा अन्य कहानियाँ" कहानी संग्रह विकेश 
निझावन की 23 कहानियों को समेटे कहानी विधा में एक मील का पत्थर सरीखी कृति है।
संग्रह की पहली कहानी "यहां कोई बैठा है" आज के सामाजिक परिवेश पर एक करारा कटाक्ष है ।हम समर्थ होते हुए भी पीछे रह जाते हैं, क्योंकि हमारे भीतर संघर्ष की सामर्थ्य नहीं होती। हम दूसरे के गढ़े हुए झूठ से सामना नहीं कर पाते। कथानायिका बुढ़िया ने एक झूठे को नंगा करने की हिम्मत दिखाई और उसने सभ्य समझे जाने वाले यात्रियों को कायर और नपुंसक तक की संज्ञा दे डाली।
कहा जाता है कि हकीम लुकमान के सामने जड़ी बूटियां स्वयं बोलती थीं,कि वह किस मर्ज की हैं?अर्थात लुकमान को जड़ी- बूटियों का  अपार ज्ञान था किंतु शक या  संदेह का इलाज हकीम लुकमान के पास भी नहीं था ।दूसरी कहानी "गांठ" के कथानायक के जीजा को संदेह  का मर्ज था। जो इतना लाइलाज हो गया था कि कथानायक की दीदी को जहर खाना पड़ा । 
सन्देह अक्सर जानलेवा ही सिद्ध होता है और वही सन्देह जब  पत्नी को हो जाता है तो नायक को अपने बिस्तर की सिलवटें के रहस्य को पत्नी को समझाने में असमर्थ पाने पर जलसमाधि ले लेनी पड़ती है "सिलवटें" कहानी एक दुखद अहसास कराती चलती है।
कहानी "उसका फैसला" संवेदना के बारीक धागों से बुनी गई है।आरंभ में साधारण सी आगे बढ़ती हुई कहानी अंत में एक असाधारण जज्बाती कहानी बन कर सामने आती है।

कभी-कभी हमें ट्रेन के सफर में हमें ऐसे चरित्र मिल जाते हैं जो हमारे समाज के कटु यथार्थ को प्रदर्शित करते हैं। ऐसा आभास होता है कि मानो ये ट्रेन होकर सारे संसार के दुख दर्द को समेटे हुए पूरा संसार है। कहानी "सुरंग"कुछ ऐसा ही आभास कराती चलती है।

कहानी "आश्रम" कई बरस पहले मैंने "हंस"में पढ़ी थी। समाज  सेवी संस्थाओं में शराफ़त का मुखौटा लगाए किस तरह इंसान के रूप में आदमखोर भेड़िए शामिल हो गए हैं, कहानी में  सांकेतिक रूप से बखूबी दर्शाया गया है। वैसे भी अक्सर समाचार पत्रों में अनाथालयों की बदनाम कहानियां अक्सर पढ़ने को मिल ही जाती हैं, चाहे वह किसी भी धार्मिक समाजसेवी संस्था की हों।

दहेज उत्पीड़न जितना बदनाम है उतना ही दहेज उत्पीड़न के लिए बने कानून का सहारा लेकर फर्जी तौर पर अपने मनमाने ढंग से ससुराल पक्ष को कटघरे में खड़ी कर देने वाली कहानी कागजों पर कम समाज में यथार्थ रूप से अधिक दृष्टिगोचर है ।"सुरक्षा कवच" कहानी में भी बहू  अपने स्वार्थवश अपनी सास पर दहेज उत्पीड़न का केस दर्ज करा कर  उसे न्यायालय के कटघरे में खड़ा कर देती है।
कहानी इतने अच्छे, अछूते  प्रसंगों से बुनी हुई है जो कहीं से भी काल्पनिक नज़र नहीं आती।

"चूड़ियां"एक तरफा प्रेम की रोचक कहानी है। तो "खुशबू वाला सिक्का"कहानी एक बांझ स्त्री की अभूतपूर्व दुखद गाथा है। नायक ने बड़ी आत्मीयता से उससे आशीर्वाद स्वरुप एक सिक्का लिया था जिसे उस बांझ औरत ने उसे याद करने पर खुशबू आने का विश्वास दिलाया था और सच में जब उसे उसकी याद आने पर उसमें खुशबू महक उठी और तभी दूसरी ओर एक तुरंत ही एक समाचार मिलने पर उसके जीवन में भी एक खुशबू से महक गई ,जो उस बांझ औरत का आशीर्वाद ही तो था।

प्राय :देखा जाता है कि वर्तमान समय में साहित्यिक गोष्ठियों और पुस्तकों का विमोचन साहित्यिक धर्म न होकर यश प्राप्ति ,पुरस्कारों का जुगाड़वाद  ज्यादा बन पड़ा है। कथा "मछली" की नायिका जो कि चिकित्सा क्षेत्र से जुड़ी है, पति के वास्तविक साहित्यिक स्वरूप को देखकर सोचने पर विवश हो जाती है कि "साहित्य तो साधना होती है, आज तक यही सुनती चली आ रही है थी लेकिन आज के वक्त में यह परिभाषा गलत हो गई है क्या?

"मातृछाया "संग्रह की एक भावना प्रधान श्रेष्ठ कहानी है। परिवार में सभी सदस्यों की सोच एक सी नहीं होती। खासतौर पर परिवार की बहुओं को घर के पारिवारिक सदस्यों से आपके आत्मीय लगाव भी नहीं रहता ।दूसरे वह हर अच्छे कार्य में भी स्वार्थ खोजने में माहिर होती हैं। किंतु हर परिवार में एक लड़का कुन्नू भैया  भी रहता है, जो परिवार की भावात्मक रूप से एकता बनाने में प्रयासरत रहता है।

कभी-कभी  पति -पत्नी के मिजाज़ आपस से मेल नहीं खाते ।बचपन से ही इन्हें सितारे न मिलना सुनते आए हैं। कहीं -कहीं  पति पत्नी जीवन भर एक दूसरे को नापसंद  करते हुए भी जीवन गुजार देते हैं। लेकिन उनके बीच संतान बड़े ही संताप में जीवन के कटु अनुभव से गुजरती हैं। जो "अंततः" कथा में बखूबी दर्शाया गया है।
"अंग्रेजों" कहानी कन्या भ्रूण हत्या के विरुद्ध एक मां की रहस्यमई कथा है जो अपने पति के मरने का नाटक कर मायके आकर रहने लगती है। किंतु वास्तविकता जानकर उसकी भाभी उसका समर्थन कर उसे सहारा देती है।
विवाह प्रथा में लड़की पसंद न पसंद की जाने वाले ढोंग से  त्रस्त होकर लड़की किस मानसिकता से गुजर जाती है। "हेयर स्टाइल "कहानी उसका एक उदाहरण प्रस्तुत करती है।

"चांद में दाग़" रिश्तो में आए बदलाव की सशक्त कथा है ,जो इशारों से ही सारी बातें कह डालती है। दुनिया रहस्यों से भरी हुई है। हम किसे अपना समझे और किसे पराया "पाखंडी "कहानी बहुत कुछ कह जाती है ।व्यक्ति  अपने 
कार्य से कितना कुछ बदल जाता है या उसकी छठी इन्द्री इतनी तेज हो जाती है कि वह सामने वाले की मन की बात भी पढ़ लेता है ।मगर सबसे बड़ा पाखंड लालच है, जो रिश्तो को भी भूल जाता है।

स्त्री को धरती की संज्ञा यूं ही नहीं दी गई है। जब "औरत" कहानी की नायिका सुमित्रा के पति की अय्याशी बर्दाश्त से बाहर हो जाती है तो वह भी परिस्थितियों से समझौता कर मन को समझा कर तटस्थ हो जाती है ।कहानी "डूबते अंधेरे"  में इस नश्वर संसार की जीवन -मृत्यु से जुड़ी बंधी-बंधाई परंपरा को तोड़कर एक सकारात्मक उजाले की किरण दिखाई देती है। 

बहन-भाइयों के रिश्तो में खटास कितनी भी हो जाए मगर बहन के प्यार में कभी  कमी नहीं आती मिले ही पारिवारिक दायित्वों, कर्तव्यों के अथवा विवशता के चलते वह अपने मन को मसोसकर रह जाए ,लेकिन वह हमेशा भाइयों को दिल से चाहती है। कहानी "लली की वापसी "इसी तरह वर्षों बाद  बहन की वापसी पर, बहन अपने स्नेह से भाइयों को सराबोर कर देती है।

नौकरशाही में चलते लेटलतीफी और अफसरशाही का एक आईना है कहानी "मजमेबाज"।
स्त्री मन और उससे उपजे अनैतिकता से उलझी हुई कहानी है" कितने प्रश्न"। सिमोन द वोउवार कहती हैं कि 
"स्त्री का अनैतिक होना स्वभाविक है ,यदि वह नैतिक होती है तो उसे एक अति मानवीय गुणों से संपन्न व्यक्तित्व प्राप्त करना  होगा। इसलिए अनेक स्त्रियाँ पति की अनुपस्थिति में ही अपना असली रूप दिखाती हैं ।कहानी की नायिका रूप नारायणी इसी  दुविधा में जी रही होती है।

एक दंपत्ति के गरीबी और बीमारी और लाचारी की भयावह कहानी है "फासला"।
इस संग्रह का शीर्षक लिए कहानी छुअन तथा अन्य कहानियाँ"एक बदसूरत लड़की की व्यथा कथा है जो कि अंत में एक खूबसूरत मोड़ ले लेती है।
प्रस्तुत संग्रह की समस्त कहानियों को पढ़कर लगता है कि विकेश की कहानियों में जो सहजता ,सरलता और सबसे बड़ी बात कथा को गढ़ने में धैर्यशीलता  के दर्शन होते हैं, अन्यत्र दुर्लभ हैं। मैं संग्रह की भूमिका में वरिष्ठ कथाकार सुश्री राजी सेठ जी के इस वक्तव्य से पूरी तरह सहमत हूं कि "विकेश की कहानी पढ़कर एक अलग ही अनुभूति होती है, लगभग अपूर्व ।भाषा और शिल्प के स्तर पर एकदम सीधा सहज सा ढांँचा ।कलात्मक जटिलता की जाहिदा तौर पर कोई चुनौती नहीं,फिर भी एक जगह पर पहुंँचकर,उस तंतुजाल में,खामोशी से बहता प्राण-प्रवाह अचानक रूक जाता है।जिद्दी हो जाता है।पाठक को आगे बढ़ जाने से इन्कार  करता है। वही खड़े होकर कथा के मर्म को, मूल प्रेरणा को ,अंतर्वस्तु, को तलाशना पड़ता है। नए सिरे से कथा के आरंभ में लौटना पड़ता है ।कथा में अचानक आए इस मोड़ पर ठिठकती नन्हीं- नन्हीं पदचापों को सुनना पड़ता है। जिसे कहानी की सहजता और पठनीयता के भुलावे में पाठक यूं ही लांँघ गया था। याद नहीं पड़ता कि ऐसी सहजता और ऐसी जटिलता के संगम की ऐसी कोई दूसरी मिसाल हमारे पास है या नहीं।"
पुस्तक का नाम : छुअन तथा अन्य कहानियाँ
लेखक : विकेश निझावन
मूल्य : 325 रुपये 
पृष्ठ :160 
प्रकाशक : विश्वास प्रकाशन, 557- बी, सिविल लाइन्स, आई.टी.आई. बस स्टॉप के सामने, अम्बाला शहर-134003 (हरियाणा)
समीक्षक :शराफ़त अली ख़ान
सम्पर्क 
343,फाइक इन्क्लेव, फेज-2, बरेली-243 006 (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल : 7906849034


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