सरफ़राज़ ख़ान
हिसार (हरियाणा). चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने किसानों को गेहूं की फसल में आगामी दिनों में होने वाले पीला रतुआ नामक रोग के बारे में आगाह करते हुए समय रहते सावधानी बरतने को कहा है। गेहूं और जौ की फसल में होने वाला यह रोग वैसे तो इन दिनों में आमतौर पर ऊंची पहाड़ी क्षेत्रों या पहाड़ी क्षेत्रीय मैदानी इलाकों में ही पाया जाता है।
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉ. आर.पी. नरवाल ने कहा कि पीला रतुआ पहले पहाड़ी इलाकों तक ही सीमित रहता है जहां 15-20 दिन तक फैलने के बाद मैदानी इलाकों में पहुंचता है। तेजी से फैलने वाले इस रोग के बीजाणु बरसात आने पर मैदानी इलाकों में हवा से जल्दी पहुंचते हैं।
इसकी रोकथाम के लिए डॉ. नरवाल ने पहले पहाड़ी तलहटी में सतर्कता बरतने की आवश्यकता जताई है। इन क्षेत्रों में पीला रतुआ दिखाई देने पर रोकथाम के लिए मैन्कोजेब (डाइथेन एम-45 की 0.2 % या टिलट 0.1 %) की दर से छिड़काव करने को कहा है ताकि रोग के जीवाणु आगे न फैलें।
उन्होंने कहा कि मैदानी इलाकों में मौसम अभी शुष्क और अधिकतम तापमान से भी नीचे चल रहा है। ऐसी हालत में पीले रतुए के बीजाणु मैदानी इलाकों में नहीं आएंगे। यदि बीजाणु आ भी गए तो पहले पहाडी ऌलाकों तक ही सीमित रहेंगे जहां 2-3 सप्प्ताह तक फैलने के बाद ही मैदानी इलाकों में पहुंचेंगे । डॉ. नरवाल ने बताया कि इस रोग के प्रकोप से गेहूं की बालियों में कम दाने बनते हैं और दानों का वजन भी कम होता है जिससे पैदावार में 50 प्रतिशत तक की कमी हो सकती है और यदि पीले रतुए का प्रकोप यादा हो तो पैदावावर में 100 प्रतिशत तक का भी नुकसान हो सकता है। उन्होंने कहा कि इस रोग के प्रकोप से गेहूं की पत्तियों पर पीले या नारंगी रंग के फफोले प्राय: पतली धारियों के रूप में ऊपरी सतह पर पाए जाते हैं । इसका प्रकोप यादा होने की अवस्था में पीले रंग के फफोले पौधे के तनों, लीफसिथ व बालियों पर भी दिखाई देते हैं। अनुसंधान निदेशक ने बताया कि पीले रतुए की शुरुआत हवा द्वारा जन्य जीवाणुओं से होती है जोकि बहुत दूर से हवा में उड़कर आ सकते हैं। जब औसतन तापमान 25 डिग्री सैल्सियस से ऊपर चला जाता है तो पत्तियों की निचली सतह पर रोग के जीवाणु काले रंग की धारियां बना लेते हैं।