सलीम अख्तर सिद्दीकी
मुझे पेंटिंग समझ में नहीं आती हैं। आड़ी-तिरछी लकीरों के बीच चित्रकार क्या कहना चाहता है, इसे आज तक नहीं समझ सका हूं। और जो लोग, मकबूल फिदा हुसैन पर रोज तीर चला रहे हैं, उनमें से अधिकतर की हालत भी शायद मेरी जैसी ही हो। सब कुछ सही चल रहा था। हुसैन की पेंटिंग महंगी से महंगी बिक रही थी, लेकिन 'विचार मीमांसा' नाम की हद दर्जे की एक घटिया पत्रिका ने एक बार कवर स्टोरी छापी थी, 'यह चित्रकार है या कसाई'. बस इस स्टोरी के छपने के बाद फिदा हुसैन द्वारा खींची गईं आड़ी-तिरछी लकीरों में कुछ लोगों को भारत माता की नंगी तस्वीर दिखाई दे गई तो कुछ लोगों को मां सरस्वती का नग्न अक्स नजर आ गया था। उसके बाद से फिदा हुसैन हिन्दूवादी संगठनों के निशाने पर आ गए थे। हालांकि यही वे लोग हैं, जो तस्लीमा नसरीन और सलमान रुश्दी पर मुस्लिम कट्टरपंथियों के हमले को अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला मानते थे। यही लोग तस्लीमा नसरीन को भारत की नागरिकता दिलाने की पुरजोर मांग करते थे, लेकिन इसके विपरीत यही हिन्दूवादी संगठन एमएफ हुसैन की कलाकृतियों को आग के हवाले करके उन पर ताबड़तोड़ मुकदमे करने से भी बाज नहीं आए थे। यहां पर उनके लिए अभिव्यक्ति की आजादी कोई मायने नहीं रखती थी। सवाल यह है कि तस्लीमा का समर्थन और हुसैन का विरोध क्यों? क्या तस्लीमा का समर्थन इसलिए किया जाता है, क्योंकि वे इस्लाम और मुसलमानों को कठघरे में खड़ा करती रही हैं। क्या एमएफ हुसैन का विरोध इसलिए, क्योंकि हिन्दूवादी संगठनों को लगता है कि हुसैन हिन्दू देवी-देवताओं की नग्न तस्वीरें अपने कैनवास पर उकेर रहे हैं। बात अगर अभिव्यक्ति की आजादी की है तो तस्लीमा के साथ ही हुसैन का समर्थन भी किया जाना चाहिए। दरअसल, हिन्दूवादी संगठन हर उस आदमी को अपना स्वाभाविक मित्र मान लेते हैं, जो इस्लाम पर प्रहार करता है। इसीलिए वे तस्लीमा नसरीन, सलमान रुश्दी और डेनमार्क के कार्टूनिस्ट की हिमायत में खड़े नजर आते हैं और इन्हें अभिव्यक्ति की आजादी की चिंता सताने लगती है।

एमएफ हुसैन की कतर की नागरिकता लेने के बाद जो बहस फिदा हुसैन को लेकर चलाई जा रही है, उसमें कुछ बातें ऐसी हैं, जिन्हें पढ़कर हंसी आती है। मसलन, इस बात को बार-बार उठाया जा रहा है कि हुसैन में हिम्मत है तो हजरत मुहम्मद साहब की तस्वीर बना कर दिखाएं। इस तर्क पर हंसी आती है। सब जानते हैं कि इस्लाम में तस्वीर बनाने की मनाही है, पैगम्बरों की तो किसी भी सूरत में तस्वीर नहीं बनाई जा सकती। इसके पीछे शायद कारण यह है कि इस्लाम ने बुतपरस्ती को सख्ती से मना किया है। लेकिन हिन्दू धर्म में तस्वीर बनाना न केवल जायज है, बल्कि सभी देवी देवताओं की तस्वीरें, मौजूद हैं, जिनके सामने खड़े होकर पूजा की जाती है। ऐसे में यह कहना कि हुसैन किसी पैगम्बर की तस्वीर बनाकर दिखाएं, कुतर्क के अलावा कुछ नहीं है। चलो मान लिया यदि हुसैन ऐसा कर सकें तो क्या हुसैन के विरोधी उनके समर्थक हो जाएंगे? क्या हुसैन का सरस्वती को नंगा चित्र बनाना जायज ठहरा दिया जाएगा?

जब कोई चित्रकार कोई चित्र बनाता है तो उसके दिमाग में यह तो होता ही होगा कि वह चित्र के माध्यम के क्या कहना चाहते है। इस सारे विवाद के बाद भी सम्भवतः हुसैन से किसी ने यह सवाल नहीं किया कि आखिर जिस तरह की चित्रकारी वे करते हैं, उसके पीछे उनकी क्या भावना रहती है? विवाद के दौरान हुसैन की तरफ से भी आज तक यह नहीं कहा गया कि जिन विवादित पेंटिंगों पर बवाल किया जा रहा है, उन्हें बनाने के पीछे उनकी अपनी क्या सोच रही थी? मसलन, मां सरस्वती का कथित चित्र उन्होंने क्या सोच कर बनाया था। इस प्रकार का कोई स्पष्टीकरण आ जाता तो शायद इतना बखेड़ा खड़ा नहीं होता। मैं यहां यह भी स्पष्ट कर दूं कि मैं न तो एमएफ हुसैन का समर्थक हूं और न ही तस्लीमा नसरीन का, क्योंकि मेरा मानना रहा है कि कला के नाम पर किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना सही बात नहीं है। भारत बहुधर्मी और विविधताओं से भरा देश है। यहां धर्म और आस्था के नाम दंगा-फसाद आम बात है। जिस देश में मात्र अफवाह से पूरे देश में गणेश जी दूध पीने लगते हों, दुल्हेंडी के दिन दोबारा से होली का पूजन किया जाता हो, किसी जीव के विचित्र बच्चा पैदा होने पर उसे पूजा जाने लगता हो, वहां पर धार्मिक प्रतीकों से छेड़छाड़ बवाल का कारण तो बनता ही है। और फिर अफवाह को आग में तब्दील करने वाले कट्टरपंथियों की पूरी फौज भी तो मौजूद है। एक बात और, तस्लीमा नसरीन, सलमान रुश्दी और एमएफ हुसैन जैसे कलाकारों पर विवाद इनकी मार्कीट वैल्यू बढ़ाने में मदद करता है। तस्लीमा नसरीन के 'लज्जा' और सलमान रुश्दी के 'द सैटेनिक वर्सेज' पर कट्टपंथी बवाल नहीं करते तो ये दोनों कृतियां कूड़े में फेंकने लायक हैं। जरा बताइए तो इन दोनों का और कौन-सी किताब कितने लोगों को याद है, और कितने लोगों ने पढ़ी है?

ईद की मुबारकबाद

ईद की मुबारकबाद

फ़िरदौस ख़ान की क़लम से

Star Web Media

ई-अख़बार पढ़ें

ब्लॉग

  • सालगिरह - आज हमारी ईद है, क्योंकि आज उनकी सालगिरह है. और महबूब की सालगिरह से बढ़कर कोई त्यौहार नहीं होता. अगर वो न होते, तो हम भी कहां होते. उनके दम से ही हमारी ज़...
  • خطبہ حجۃ الوداع - ” سب تعریف اللہ ہی کے لیے ہم اسی کی حمد کرتے ہیں۔ اسی سے مدد چاہتے ہیں۔ اس سے معافی مانگتے ہیں۔ اسی کے پاس توبہ کرتے ہیں اور ہم اللہ ہی کے ہاں اپنے نف...
  • Rahul Gandhi in Berkeley, California - *Firdaus Khan* The Congress vice president Rahul Gandhi delivering a speech at Institute of International Studies at UC Berkeley, California on Monday. He...
  • میرے محبوب - بزرگروں سے سناہے کہ شاعروں کی بخشش نہیں ہوتی وجہ، وہ اپنے محبوب کو خدا بنا دیتے ہیں اور اسلام میں اللہ کے برابر کسی کو رکھنا شِرک یعنی ایسا گناہ مانا جات...
  • हमारा जन्मदिन - कल यानी 1 जून को हमारा जन्मदिन है. अम्मी बहुत याद आती हैं. वे सबसे पहले हमें मुबारकबाद दिया करती थीं. वे बहुत सी दुआएं देती थीं. उनकी दुआएं हमारे लिए किस...
  • 25 सूरह अल फ़ुरक़ान - सूरह अल फ़ुरक़ान मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 77 आयतें हैं. *अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है*1. वह अल्लाह बड़ा ही बाबरकत है, जिसने हक़ ...
  • ਅੱਜ ਆਖਾਂ ਵਾਰਿਸ ਸ਼ਾਹ ਨੂੰ - ਅੱਜ ਆਖਾਂ ਵਾਰਿਸ ਸ਼ਾਹ ਨੂੰ ਕਿਤੋਂ ਕਬੱਰਾਂ ਵਿਚੋਂ ਬੋਲ ਤੇ ਅੱਜ ਕਿਤਾਬੇ-ਇਸ਼ਕ ਦਾ ਕੋਈ ਅਗਲਾ ਵਰਕਾ ਫੋਲ ਇਕ ਰੋਈ ਸੀ ਧੀ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਤੂੰ ਲਿਖ ਲਿਖ ਮਾਰੇ ਵੈਨ ਅੱਜ ਲੱਖਾਂ ਧੀਆਂ ਰੋਂਦੀਆਂ ਤ...

एक झलक

Followers

Search

Subscribe via email

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

साभार

इसमें शामिल ज़्यादातर तस्वीरें गूगल से साभार ली गई हैं