स्टार न्यूज़ एजेंसी
नई दिल्ली. लंबी जद्दो-जहद के बाद आखिर आज राज्यसभा में महिला आरक्षण विधेयक भारी बहुमत से पारित होने से एक नया इतिहास रचा गया है. महिला आरक्षण के पक्ष में 186 मत डाले गए, जबकि इसके खिलाफ़ सिर्फ़ एक वोट ही दिया गया.

पहली बार 12 सितंबर 1996 को तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा के नेतृत्व में संयुक्त मोर्चा सरकार ने महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण संबंधी विधेयक लोकसभा में पेश किया था. इसके बाद 9 दिसंबर 1996 को भाकपा की गीता मुखर्जी की अध्यक्षता में गठित कमेटी ने महिला आरक्षण पर अपनी रिपोर्ट पेश की. विपक्षी दलों का समर्थन न मिलने की वजह से लोकसभा में यह विधेयक पारित नहीं हो पाया. इसके बाद दिसंबर 1998 में एनडीए सरकार के दौरान प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने महिला आरक्षण से संबंधित विधेयक दोबारा पेश किया, लेकिन इसका वही हश्र हुआ. फिर 23 दिसंबर 1999 को लोकसभा में विपक्षी सांसदों ने महिला आरक्षण विधेयक को तत्कालीन कानून मंत्री राम जेठमलानी के हाथ से छीन लिया और सदन में शोर-शराबा किया. करीब एक दशक बाद जून 2008 में राष्ट्रपति ने 15वीं लोकसभा के गठन पर अपने अभिभाषण में महिला आरक्षण पर मौजूदा यूपीए सरकार की प्रतिबद्धता का ज़िक्र करते हुए इस मुद्दे को एक बार फिर से ज़िंदा कर दिया. फरवरी 2010 में कैबिनेट ने नए संशोधन के साथ महिला आरक्षण विधेयक को मंजूरी दे दी. इसी माह 4 मार्च को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने विधेयक पास करने का आह्वान करते हुए महिलाओं के हक़ की बात की. अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस ८ मार्च को भारी हंगामे के बीच महिला आरक्षण विधेयक राज्यसभा में पेश किया गया. हालांकि इस विधेयक को लेकर संसद के दोनों सदनों में काफ़ी शोर-शराबा हुआ. राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और समाजवादी पार्टी (सपा) सांसदों ने इसका जमकर विरोध किया. इतना ही नहीं महिला आरक्षण विधेयक से नाराज़ राष्ट्रीय जनता दल और समाजवादी पार्टी ने केंद्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की सरकार से समर्थन भी वापस ले लिया.

क़ाबिले-गौर है कि किसी भी विधेयक पारित होने के लिए सदन में मौजूद सांसदों की दो तिहाई संख्या उसके पक्ष में होनी चाहिए. इसलिए लोकसभा व विधानसभाओं में महिलाओं को 33 फ़ीसदी आरक्षण दिलाने वाले इस विधेयक की मंज़ूरी के लिए 233 की 155 मतों की ज़रूरत थी और इस मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी, उसके सहयोगी दलों, वाम दलों व यूपीए के एक मंच पर आ जाने से इसकी सारी रुकावटें दूर हो गईं.

बहुजन समाजवादी पार्टी के राज्यसभा में सभी 15 सदस्यों ने भी इसका बहिष्कार किया, वहीं तृणमूल कांग्रेस ने भी इस विधेयक के मतदान में हिस्सा नहीं लिया. अपने तर्क में पार्टी सुप्रीमो ममता बनर्जी ने कहा कि उनकी पार्टी को विधेयक पारित कराने के तरीके की जानकारी नहीं दी गई थी. साथ ही प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने उन्हें आश्वासन दिया था कि पहले इस मामले पर एक सर्वदलीय बैठक होगी.

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