संजय आहूजा
हमारे शरीर में रक्त का संचार एक निरंतर प्रक्रिया है, जो बिना हमारी जानकारी के प्रवाहित होता है. रक्त का दबाव वाहिनियों पर भी निरंतर पड़ता है. जब दिल रक्त को धमनियों में धकेलता है तब दबाव अधिक हो जाता है. इसे आधुनिक चिकित्सक सिस्तालिक ब्लड प्रेशर के नाम से जानते हैं स्वस्थ व्यक्ति के लिए इसका मानक है- 120 mm Hg (मिली मीटर पारा). जब यही दबाव घट जाता है तो निचला मानक 80 mm Hg लागू होता है. इसे चिकित्सक दयास्तालिक ब्लड प्रेशर कहते हैं.
यही दबाव जब बढ़कर 140 /90 का मानक पार कर जाता है तो यह स्थिति उच्च रक्तचाप कहलाती है. उच्च रक्तचाप का कोई लक्षण न होने के कारण यह वर्षों तक धमनियों पर प्रभाव डालता रहता है और इसी करण इसे शांत मृत्यु की संज्ञा दी गई है. कई बार तो रोगी इससे वर्षों तक ग्रस्त रहते हैं मगर जब कोई बड़ा संकट जैसे दिल का दौरा या दिमाग की नस फटने जैसा कुछ सामने आता है तब पाता चलता है कि ये सब उच्च रक्तचाप के कारण हुआ. अब तक प्रचलित दवाओं से रक्तचाप नियंत्रित तो रहता है पर दवाओं में मौजूद ज़हरीले रसायनों का भी शरीर पर निरंतर दुष्प्रभाव पड़ता है. क्योंकि इन दवाओं से रक्तचाप नियंत्रित तो रहता है पर यही दवाएं जीवनभर खानी पड़ती हैं. और मुनाफ़ा केवल दवा बनाने वालों को मिलता है क्योंकि एक बार शुरू हुई तो रोगी जीवनभर दवा खाकर ही अपनी जान बचा सकता है.
अब जब चिकित्सा शास्त्र ने एक बेहतर ईलाज के लिए दुनिया भर की ओर ताका तो एक बार फिर उन्हें संसार की सबसे पुरानी चिकित्सा पद्धति यानी योगिक क्रिया की ही शरण लेनी पड़ी. हमारे योगियों ने अनुलोम-विलोम प्राणायाम के रूप में मानवता को जो वरदान दिया है उससे रक्तचाप उच्च हो या निम्न दोनों ही न केवल नियंत्रित होते हैं बल्कि पूरी तरह से ठीक भी हो जाते हैं. इसके लिए चिकित्सकों ने रक्तचाप पीड़ित लोगों पर आजमाया तो सिस्तालिक दबाव 36 और दयास्तालिक दबाव 20 मानक तक घट गए. और न केवल घटे बल्कि उसी मानक के आस-पास स्थिर भी रहे.
अनुलोम-विलोम प्राणायाम करने की विधि भी बहुत साधारण है. पर विधि बताने से पहले योग अनुलोम-विलोम के विषय में क्या कहता है उसका विवरण देना अनिवार्य है. हमारी बायीं ओर से इडा प्राण और दायीं ओर से पिंगला प्राण वायु को निरंतर प्रवाहित करते रहते हैं. दोनों प्राण स्वस्थ शरीर में लगभग एक घंटा पचास मिनट तक एक के पश्चात् दूसरा ऐसे निरंतर प्रवाहित होते हैं. इडा प्राण हमारे दाएं मस्तिष्क को और पिंगला प्राण हमारे बाएं मस्तिष्क को वायु प्रदान करते हैं. अस्वस्थ शरीर में ऐसा भी हो सकता है कि किसी एक प्राण का समय दूसरे से घट जाए या ऐसा भी कि दोनों ही प्राणों का समय घट या बढ़ जाए. इससे प्रभावित अंग भी अस्वस्थ हो जाते हैं. मगर मात्र तीन माह तक नियमित रूप से यह प्राणायाम करने से न केवल श्वास नियंत्रित होते हैं वरन रोग से भी निवारण हो जाता है. यहां तक कि ह्रदय और मस्तिष्क की ग्रंथियां भी पुष्ट होती हैं.
इसे करने की विधि है - पहले अपनी दाईं मध्यमा और अनामिका अँगुलियों और अंगूठे के बीच अपनी नासिका दबा लें. फिर अंगूठे को ढीला करके श्वास धीमे से खींचें और सामान्य गति से चार तक गिनें, फिर उसी गति से गिनते हुए सोलह तक गिनते हुए श्वास रोककर रखें और अंत में दाईं नासिका को वापस अंगूठे से दबाकर बाईं ओर की नासिका से अंगुलियों को ढीला करके धीमे-धीमे श्वास को छोड़ें और उसी गति से आठ तक गिनते हुए श्वास छोड़ें. यह क्रिया इसी अनुपात में की जाती है और इसे पंद्रह बार दोहराएं. फिर यही क्रिया बाएँ हाथ से बाईं नासिका की ओर से दोहराएं.
इसे करने से न केवल श्वास नियंत्रित होते हैं बल्कि कई बीमारियों से भी छुटकारा मिलता है. आधुनिक चिकित्सा ने तो इसे केवल उच्च रक्तचाप पीड़ित व्यक्तियों पर आजमाया है पर यही क्रिया निम्न रक्तचाप से भी छुटकारा देती है.
यही दबाव जब बढ़कर 140 /90 का मानक पार कर जाता है तो यह स्थिति उच्च रक्तचाप कहलाती है. उच्च रक्तचाप का कोई लक्षण न होने के कारण यह वर्षों तक धमनियों पर प्रभाव डालता रहता है और इसी करण इसे शांत मृत्यु की संज्ञा दी गई है. कई बार तो रोगी इससे वर्षों तक ग्रस्त रहते हैं मगर जब कोई बड़ा संकट जैसे दिल का दौरा या दिमाग की नस फटने जैसा कुछ सामने आता है तब पाता चलता है कि ये सब उच्च रक्तचाप के कारण हुआ. अब तक प्रचलित दवाओं से रक्तचाप नियंत्रित तो रहता है पर दवाओं में मौजूद ज़हरीले रसायनों का भी शरीर पर निरंतर दुष्प्रभाव पड़ता है. क्योंकि इन दवाओं से रक्तचाप नियंत्रित तो रहता है पर यही दवाएं जीवनभर खानी पड़ती हैं. और मुनाफ़ा केवल दवा बनाने वालों को मिलता है क्योंकि एक बार शुरू हुई तो रोगी जीवनभर दवा खाकर ही अपनी जान बचा सकता है.
अब जब चिकित्सा शास्त्र ने एक बेहतर ईलाज के लिए दुनिया भर की ओर ताका तो एक बार फिर उन्हें संसार की सबसे पुरानी चिकित्सा पद्धति यानी योगिक क्रिया की ही शरण लेनी पड़ी. हमारे योगियों ने अनुलोम-विलोम प्राणायाम के रूप में मानवता को जो वरदान दिया है उससे रक्तचाप उच्च हो या निम्न दोनों ही न केवल नियंत्रित होते हैं बल्कि पूरी तरह से ठीक भी हो जाते हैं. इसके लिए चिकित्सकों ने रक्तचाप पीड़ित लोगों पर आजमाया तो सिस्तालिक दबाव 36 और दयास्तालिक दबाव 20 मानक तक घट गए. और न केवल घटे बल्कि उसी मानक के आस-पास स्थिर भी रहे.
अनुलोम-विलोम प्राणायाम करने की विधि भी बहुत साधारण है. पर विधि बताने से पहले योग अनुलोम-विलोम के विषय में क्या कहता है उसका विवरण देना अनिवार्य है. हमारी बायीं ओर से इडा प्राण और दायीं ओर से पिंगला प्राण वायु को निरंतर प्रवाहित करते रहते हैं. दोनों प्राण स्वस्थ शरीर में लगभग एक घंटा पचास मिनट तक एक के पश्चात् दूसरा ऐसे निरंतर प्रवाहित होते हैं. इडा प्राण हमारे दाएं मस्तिष्क को और पिंगला प्राण हमारे बाएं मस्तिष्क को वायु प्रदान करते हैं. अस्वस्थ शरीर में ऐसा भी हो सकता है कि किसी एक प्राण का समय दूसरे से घट जाए या ऐसा भी कि दोनों ही प्राणों का समय घट या बढ़ जाए. इससे प्रभावित अंग भी अस्वस्थ हो जाते हैं. मगर मात्र तीन माह तक नियमित रूप से यह प्राणायाम करने से न केवल श्वास नियंत्रित होते हैं वरन रोग से भी निवारण हो जाता है. यहां तक कि ह्रदय और मस्तिष्क की ग्रंथियां भी पुष्ट होती हैं.
इसे करने की विधि है - पहले अपनी दाईं मध्यमा और अनामिका अँगुलियों और अंगूठे के बीच अपनी नासिका दबा लें. फिर अंगूठे को ढीला करके श्वास धीमे से खींचें और सामान्य गति से चार तक गिनें, फिर उसी गति से गिनते हुए सोलह तक गिनते हुए श्वास रोककर रखें और अंत में दाईं नासिका को वापस अंगूठे से दबाकर बाईं ओर की नासिका से अंगुलियों को ढीला करके धीमे-धीमे श्वास को छोड़ें और उसी गति से आठ तक गिनते हुए श्वास छोड़ें. यह क्रिया इसी अनुपात में की जाती है और इसे पंद्रह बार दोहराएं. फिर यही क्रिया बाएँ हाथ से बाईं नासिका की ओर से दोहराएं.
इसे करने से न केवल श्वास नियंत्रित होते हैं बल्कि कई बीमारियों से भी छुटकारा मिलता है. आधुनिक चिकित्सा ने तो इसे केवल उच्च रक्तचाप पीड़ित व्यक्तियों पर आजमाया है पर यही क्रिया निम्न रक्तचाप से भी छुटकारा देती है.