वीर विनोद छाबड़ा 
छोटा कद व गठीला बदन. बड़ी-बड़ी आंखें, आमंत्रित करते होंट और चेहरे पर टपकता चुलबुलापन. नलिनी जयवंत बरबस ही किसी का भी ध्यान आकर्षित कर लेती थीं. उस दौर के जानकारों ने लिखा है वो एक जगह टिक कर बैठ नहीं सकती थीं. सेट पर भी इधर से उधर डोला करती थीं. मगर अंदर ही अंदर उन्हें  अकेलेपन का गम खाता रहा. उसका कोई स्थायी साथी नहीं था जो उसके मन को पढ़ सके, उसके दुख और अकेेलेपन को शेयर कर सके. मां-बाप, भाई-बहन और परिवार, दोस्तों सभी ने ठुकराया. पहले पति वीरेंद्र देसाई से पटी नहीं. वो उम्र में बहुत बड़ा था. ज़ालिम था और मार-पीट भी करता था. एक्टर अशोक कुमार से उनका दस साल तक दिल का नाता रहा. लेकिन ज़माने के डर से अशोक कुमार खुल्लम-खुल्ला उन्हें अपना न सके जैसा कि मोतीलाल ने शोभना समर्थ के समर्थन में किया था. तन्हाई से छुटकारा पाने के लिए नलिनी ने प्रोड्यूसर-डायरेक्टर प्रभुदयाल से शादी कर ली. लेकिन वो अपने ही ग़म से खाली नहीं थे, शराब में डूबे रहते. 

साठ के दशक के मध्य तक नलिनी एक्टिव रहीं. फिर नई नायिकाओं की आमद, बदलते सामाजिक मूल्य और नये आसमान. नलिनी का वक़्त खत्म हो गया. उन्होंने अकेलेपन के अंधेरे को अपना साथी बना लिया. मान लिया कि उसका अपना कोई नहीं है. यहां आदमी सिर्फ खुद से प्यार करता और जीता है. अस्सी के दशक में ‘बंदिश’ और ‘नास्तिक’ को छोड़ कर नलिनी ने कभी बाहर की दुनिया नहीं देखी. उनके कुछ ही नाते-रिश्तेदार थे. कुछ मित्रगण उनसे मिलने आते थे. लेकिन उनकी मौजूदगी नलिनी को अच्छी नहीं लगती थी. वो चुपचाप बैठी रहती. फिर यह जान कर कि नलिनी अपनी तनहाईयों से खुद ही बाहर नहीं आना चाहती तो उन्होंने भी किनारा कर लिया. 

नलिनी के एक मित्र का कहना था कि वो असुरक्षा की भावना से पीड़ित थी. आस-पास रहने वालों से यदा-कदा ही कभी बात करती थीं. सच तो यह था कि उनमें से अधिकतर को नहीं मालूम था कि उनके पड़ोस में कभी लाखों दिलों पर राज करने वाली बीते दिनों की शोख हसीना रहती हैं जो अनोखा प्यार, समाधी, संग्राम, नौजवान, शिकस्त, नास्तिक, फिफ्टी फिफ्टी, दुर्गेश नंदिनी, हम सब चोर हैं, आनंद मठ, हम सब चोर हैं, मिस बॉम्बे, कालापानी, मुनीम जी जैसी मशहूर फिल्मों की नायिका रही है और दिलीप कुमार, देवानंद, शम्मी कपूर और प्रदीप कुमार उनके हीरो थे. 

नलिनी ने दो कुत्ते पाल रखे थे. वही उनके अभिन्न साथी थे. उन्हीं से वो बात करती थीं. उसे डर लगता था कि उन्हें कुछ हो न जाए. इसीलिए उन्होंने उनकी सेहत का बहुत ध्यान रखा. उनको बढ़िया खाना दिया. उन्हें कभी तन्हा नहीं रहने दिया. एक पड़ोसी ने एक दिन नलिनी को लंगाड़ते हुए देखा. शायद पैर में चोट लगी थी. उसने चिंतित होकर डाक्टर की मदद का प्रस्ताव दिया. मगर नलिनी ने मना कर दिया. 

नलिनी चेंबूर में एक बहुत बड़े बंगले में पिछले 60 साल से रहती रहीं. 22 दिसंबर 2010 को बंगले पर पुलिस और एंबुलेंस की मौजूदगी को देख कर अड़ोस-पड़ोस में रहने वाले चौंके. बंगले से बदबू आ रही थी. तब किसी ने पुलिस को फोन कर दिया. पता चला कि नलिनी की तो दो दिन पहले ही मृत्यु हो चुकी है. वो उस वक्त तन्हा थीं. उन्हें दिल का दौरा पड़ा था. वो किसी को बता भी नहीं सकीं. उसके कुत्ते इधर-उधर भटक रहे थे. लेकिन ज़ुबां नहीं होने के कारण वो भी किसी को कुछ बता नहीं पाए. कुछ लोगों को यह जान कर ताज्जुब हुआ कि यह लाश गुज़रे वक्त की मशहूर अदाकारा नलिनी जयवंत की है. जब उनका शव एंबुलेंस से जा रहा था तो कोई भी रिश्तेदार, मित्र मौजूद नहीं था. बाद में किसी दूर के रिश्तेदार ने उनके शव को पहचानने की औपचारिकता निभाई और अंतिम संस्कार किया. 

अफ़सोस की बात है कि नलिनी की मृत्यु पर सिर्फ पुराने सिनेमा से जुड़े मीडिया के एक हिस्से ने शोक व्यक्त किया. इलेक्ट्रिानिक मीडिया ने कोई त्वजो नहीं दी. जब कभी कोई म्यूज़िक चैनल गोल्डन इरा के गोल्डन डेज़ की बात चलाता है तो पचास के दशक की शोख हसीना नलिनी दिल की ओर इशारा करते हुए गा उठती है - नज़र लागी राजा तोहे बंगले पे... जीवन के सफ़र में राही, मिलते हैं बिछुड़ जाने को...ठंडी हवाएं लहरा के आएं... मृत्यु के समय तन्हाई को दोस्त समझने वाली नलिनी की उम्र 84 साल थी. कभी-कभी पीछे मुड़ कर लाखों दिलों की मलिका नलिनी के बारे में सोचता हूं तो बरबस मुंह से यही निकलता है कैसे-कैसे लोग होते है? क्यों दुनिया से अलग एक तन्हा दुनिया बसा लेते हैं लोग?

जन्म 18 फ़रवरी 1926
निधन 20 दिसम्बर 2010 


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