आये हो यहां तुम, पहले पहल, ये बस्ती है बेगानों की
है फ़र्क़ बहुत नादान मिरे ! कहने में अपना, होने में
जब ख़्वाब उचक ले आंखों से, इक याद पुराने मंज़र की
फिर चैन कहां बेदारी में, आराम किसे फिर सोने में
दिन टूट के बिखरा साहिल पर, कुछ रेत उड़ी कुछ शोर हुआ
फिर रात नयी सी, ख़र्च हुई, लहरों में लहर पिरोने में
-सुहेल आज़ाद
