स्टार न्यूज़ एजेंसी
नई दिल्ली. आज भारतीय होने को ही हृदय बीमारी का आशंकित तथ्य माना जा रहा है। ऐसा अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन में दिखाया गया है कि भारतीय डॉक्टर जो अमेरिका में जाते हैं, उनमें हार्ट अटैक की संभवना 17 गुना ज्यादा होती है बनिस्बत अमेरिकी डॉक्टरों के जो अमेरिका में ही रह रहे होते हैं।
हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष और ईमेडिन्यूज के एडिटर डॉ. के के अग्रवाल के मुताबिक भारतीयों में दिल की बीमारी कम उम्र में ही होने लगती है। हर व्यक्ति को चाहिए कि वे जानी-मानी हस्तियों की अकस्मात मौत से सबक लें जिनकी मौत इस बीमारी से हुई उनमें प्रमुख हैं- विनोद मेहरा, देवांग मेहता, अमजद खान, संजीव कुमार आदि। ये सभी मैसिव हार्ट अटैक की गिरफ्त में आए जिनमें कुछ घंटों के अंदर ही इसके लक्षण नजर आ चुके थे ओर अपने करियर के शिखर के दौरान कम उम्र में चल बसे। सैफ अली खान में भी कुछ इस तरह का कोरोनरी अटैक हो चुका है, लेकिन वे इससे उबर चुके हैं, क्योंकि मॉडर्न गजट और ड्रग्स मौजूद हैं। 45 से कम उम्र में कोरोनरी आर्टरी डिसीज देश में मौन रूप से फैल रहा है जिसके लिए तेजी से प्रबंध किए जाने की जरूरत है। जिन लोगों में दिल की बीमारी हो तो उनके खून के रिश्ते वालों में भी इससे बचाव के तरीके अपनाने चाहिए।
जिन बच्चों के पिता को 55 की उम्र और मां को 65 की उम्र के पहले ही हार्ट अटैक हो चुका है तो उनमें कई तरह की जांच करवानी चाहिए ताकि हार्ट डिसीज का पता लगाया जा सके। 45 साल से कम उम्र के पुरुष और रजोनिवृत्ति के बाद की महिलाएं में भी अगर उनमें इस तरह का खतरा हो तो संभावित हार्ट ब्लॉकेज को देखा जाना चाहिए।
यह भी सच्चाई है कि समान्य तरीके जो महिलाएं हार्ट अटैक से बचाव के तरीकों को नहीं अपना पाती हैं, उसकी वजह लगातार गलत जीवन शैली को अपनाना होता है। महिलाओं में हार्ट अटैक कहीं ज्यादा गंभीर और जानलेवा होता है। देश में महिलाओं में दिल की बीमारी से मौत के मामले बढ़ रहे हैं बनिस्बत सभी तरह के होने वाले कैंसरों की बीमारी के।
हार्ट ब्लॉकेज के कम उम्र के हार्ट ब्लॉकेज के मरीजों में एथीरोजेनिक लिपिड प्रोफाइल ज्यादा एब्नॉर्मल हो और वे धूम्रपान करते हों तो उनमें सिंगल वैसल कोरोनरी ब्लॉकेज डिसीज का खतरा ज्यादा होता है। 1000 मरीजों के आंकड़ों में जिन्होंने एंजियोग्राफी करवाई, उसमें देखा गया है कि 84 फीसदी मरीज पुरुष थे। महज 16 फीसदी महिलाओं ने ही एंजियोग्राफी करवाई। जिन्होंने एंजियोग्राफी करवाई उनमें 47 फीसदी पुरुष डायबिटीज से ग्रसित थे, 52 फीसदी महिलाएं, हाइपरटेंशन के 71 फीसदी मरीज (पुरुष और महिलाएं समान), एब्नॉर्मल लिपिड में 94 फीसदी महिलाएं और 85 फीसदी पुरुश थे; जिनका पारिवारिक इतिहास रहा उनमें 30 फीसदी महिलाएं ओर 19 फीसदी पुरुष और परिवार के उन सदस्यों में हार्ट ब्लाकेज हुआ, उनमें 63 फीसदी महिलाएं और 54 फीसदी पुरुश थे। केवल 10 फीसदी मरीज ही धूम्रपान करने वाले थे और इनमें 6 फीसदी ही 45 साल से कम्र उम्र वाले थे।
पश्चिमी देशों के लोगों की तुलना में भारतीयों में अलग तरह के आशंकित तथ्य हैं। डॉ. एनस इया, फ्लोरिडा का हवाला देते हुए डॉ. अग्रवाल ने बताया कि पूरी दुनिया की तुलना में एषियाई भारतीयों में हार्ट ब्लॉकेज के मामले सबसे ज्यादा सामने आते हैं, जबकि करीब 50 फीसदी भारतीय शाकाहारी हैं। इनमें यह बीमारी न सिर्फ समय से पहले होती है बल्कि मैलिगनैंट कोर्स धारण कर लेती है। प्राचीन आशंकित तथ्यो में धूम्रपान, ब्लड प्रेशर और मधुमेह तो हैं, जबकि पश्चिमी देशों में कम है। भारतीय में प्रमुख आशंकित तथ्य उच्च ट्राइग्लाइसराइड, एचडीएल गुड कोलेस्ट्रॉल में कमी, उच्च इंसुलिन स्तर, सेब के आकार असामान्य मोटापा और उच्च एलपी (ए) कोलेस्ट्रॉल स्तर।
कई अध्ययनों में दिखाया गया है कि हृदय रोगियों के सगे संबधियों में मेटॉबॉलिक ब्लड असमान्यता भी इसकी वजह होती है। 5 से 18 उम्र के बच्चों में जिनके माता-पिता में 45 की उम्र में कोरोनरी ब्लॉकेज की समस्या हुई हो, उनमें कोलेस्ट्रॉल, शुगर, ब्लड प्रेशर और इंसुलिन स्तर असामान्य देखा गया। यह स्तर काबू करनेवालों की तुलना में कहीं ज्यादा दर्ज किया गया। जीवन शैली में बदलाव से कम उम्र में ही कोरोनरी ब्लॉकेज की समस्या से लोगों को बचाया जा सकता है।
देष के अलग-अलग हिस्सों के लोगों में कोरोनरी ब्लॉकेज के भी भिन्न-भिन्न मामले सामने आते हैं। केरल में सबसे ज्यादा मामले सामने आते हैं। उत्तर में पंजाबी भाटिया परिवार में इसके सबसे ज्यादा मामले हैं। डॉ. आर गुप्ता जो जयपुर से हैं ने देखा कि कमर का मोटापा, ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, मेटाबॉलिक सिंड्रोम पंजाबी भाटिया समुदाय में कहीं ज्यादा पायी जाती है। एशियाइयों में भी भारतीय महिलाओं में कोरोनरी ब्लॉकेज की दर कहीं ज्यादा है जो उम्र और एथनिक ग्रुप के हिसाब से अलग है भले ही उनमें इसके आशंकित तथ्य एक जैसे हों। भालोडकर एंड ग्रुप, न्यूयार्क ने देखा कि एशियाई भारतीय महिलाओं में गुड कोलेस्ट्रॉल का हिस्सा बहुत कम होता है और ट्राइग्लाइसराइड का स्तर उच्च होता है।