वीर विनोद छाबड़ा 
आज की पीढ़ी ने यक़ीनन गुज़रे दौर की ख़ूबसूरत श्यामा को नहीं देखा होगा. वो संगीतकारों की पहली पसंद होती थीं. क्योंकि उनकी धुनों पर बने नग्मों पर वो जिस अंदाज़ से थिरकतीं थीं, झूमती और ठुमकती थीं, वो हिट ही नहीं सार्थक भी हो जाते थे. मज़े की बात ये कि श्यामा किसी भी सूरत से डांसर नहीं थीं. ज़्यादा नहीं, यू-ट्यूब पर सिर्फ़ ये गाना ही देख लें - ऐ दिल मुझे बता दे, तू किस पे आ गया है...(भाई भाई, 1956). अगर अच्छा लगे तो ये भी देख लें - 'ऐ लो मैं हारी पीया...(आर-पार, 1955). ऐसे एक नहीं दर्जनों गाने हैं, जिन्हें श्यामा ने अपने चेहरे पर उतरते-चढ़ते भावों, आखों, पलकों और होटों की हरकतों ने यादगार बना दिया. कली अनार की इत ना सताओ प्यार करने की कोई रीत बताओ...(छोटी बहन, 1959), मुझे मिल गया बहाना तेरी दीद का...न तो कारवां की तलाश है...(बरसात की रात, 1960), सुन सुन ओ ज़ालिमा....(आर-पार), देखो वो चाँद छुप के करता है क्या ईशारे...(शर्त, 1954), छुपा के मेरी आँखों को...(भाभी, 1957). गीत-संगीत के लिए गज़ब का दौर था पचास से साठ के सालों का वक़्त, न सिर्फ गायकों, गीतकारों और संगीतकारों के लिए भी बल्कि कलानेत्रियों के लिए भी. उनकी आँखों, पलकों, होटों और उन पर तैरती मुस्कान को दिल-ओ-दिमाग में बैठा कर शायर गाने गढ़ते थे और गाने वाले भी खो जाते थे.
1935 में लाहोर में जन्मी श्यामा तब खुर्शीद अख़्तर होती थी. चालीस के सालों में वो बम्बई आयी. सहेलियों के साथ 'ज़ीनत' (1945) की शूटिंग देख रही थी. एक डांस सीन में कुछ लड़कियों की ज़रूरत थी. नायिका नूरजहां के पति और डायरेक्टर शौकत हुसैन रिज़वी ने लड़कियों से पूछा फिल्म में काम करोगी?श्यामा तुरंत बोल उठी, मैं करुँगी. और इस तरह बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट खुर्शीद की फिल्मों में एंट्री हुई. प्रोड्यूसर-डायरेक्टर विजय भट्ट ने कहा, खुर्शीद नाम की तो बहुत लड़कियां हैं फ़िल्मइंडस्ट्री में, मगर तुम श्यामा नाम की अकेली होगी. और सचमुच आज तक उनके नाम जैसी और साथ-साथ उनकी जैसी दूजी न हुई. जब वो देवानंद-निम्मी के साथ 'सज़ा' (1951) कर रही थीं तो फोटोग्राफर फली मिस्त्री उनकी खूबसूरती को कैमरे में क़ैद करते-करते खुद ही क़ैद हो गए. श्यामा को भी अच्छे लगे. दोनों ने छुप कर शादी की. इसलिए कि श्यामा मुस्लिम और फली मिस्त्री पारसी. दोनों के परिवार राज़ी नहीं. दूसरा कारण था, फिल्मों से दूर हो जाना. उन दिनों नायिका की शादी हुई नहीं कि उसकी रोमांटिक इमेज ख़त्म हो गयी. उनकी शादी का राज़ कई साल बाद खुला जब श्यामा मां बनने को हुई.  
श्यामा 1945 से 1980 तक इंडस्ट्री में एक्टिव रहीं और इस दौरान वो 147 फिल्मों में नज़र आयीं. वो बेहद खूबसूरत थी, चेहरा फोटोजेनिक था, टैलेंट था. 'तराना' में वो दिलीप कुमार की होने वाली पत्नी थी, लेकिन दिलीप कुमार के दिल में मधुबाला थी. गुरुदत्त की हिट 'आरपार' की वो नखरे वाली चुलबुली नायिका थी. 'बड़ी बहन'(1959) में श्यामा का राजेंद्र कुमार के सामने डबल रोल था, एक शैतान लड़की का और दूसरा सीधी-सादी-डरपोक लड़की. बहुत पसंद की गयी ये फिल्म. बरसों बाद राखी ने इसी पर आधारित 'शर्मीली' की थी. मगर इसके बावजूद श्यामा को हर बार नायिका का रोल नहीं मिला. उन्हें कमतर आंका गया. लेकिन श्यामा को कोई फ़र्क नहीं पड़ा. जो भी रोल मिला कर लिया और पावरफुल परफॉरमेंस से अपनी मौजूदगी का भरपूर अहसास कराती रहीं. कई बार तो नायिका से ज़्यादा उन्हें सराहा गया. 'बरसात की रात' में उन्होंने मधुबाला को पीछे ढकेल दिया. 'शारदा' (1959) में वो राजकपूर की पत्नी थीं, जिसे एक दिन पता चलता है कि उसके पति का अपनी सौतेली मां (मीनाकुमारी) से कभी अफेयर रहा है. इसके लिए श्यामा को बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस का फिल्मफेयर अवार्ड भी मिला. स्टंट की दुनिया में उनकी 'ज़बक' (1961) हिट फिल्म थी जिसके हीरो महिपाल थे. जॉनी वॉकर के साथ भी श्यामा कई फिल्मों में नायिका रहीं, छूमंतर, चार पैसे, जॉनी वॉकर, दुनिया रंग रंगीली, मिस्टर कार्टून एमए और खोटा पैसा. 
छोटी बहन, भाभी, मिलन, दुनिया झुकती है, घर बसा के देखो, जानवर, दिल दिली दर्द लिया आदि तमाम फिल्मों में कभी वो बुरी औरत तो कभी सहृदय नज़र आईं. 1979 में फली मिस्त्री की मौत से वो टूट गयीं. हालांकि उनके तीन बच्चे थे, दो बेटे और बेटी. लेकिन उन्होंने अपनी यादों की दुनिया के साथ अकेली रहना पसंद किया. वो अक्सर कहती थीं, लोग आये और चले गए, यादें छोड़ गए. मेरा बैरी कोई नहीं, सब दोस्त हैं. 14 नवंबर 2017 को 82 साल की उम्र में श्यामा ने अंतिम सांस ली, उन्हें लंग इंफेक्शन की समस्या थी. 


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