"अराजकता की ओर बढ़ता हमारा देश" – यह वाक्यांश आजकल सोशल मीडिया, समाचारों और राजनीतिक बहसों में गूंज रहा है। 2025 के मध्य तक, भारत में बढ़ती हिंसा, संस्थागत कमजोरी, आर्थिक असमानता और पड़ोसी देशों की अस्थिरता ने इस धारणा को बल दिया है कि हमारा लोकतंत्र खतरे में है। लेकिन क्या यह वास्तव में अराजकता की दिशा में एक अपरिहार्य यात्रा है, या सिर्फ एक चेतावनी जो सुधार की मांग करती है?
आइए, हालिया घटनाओं, आंकड़ों और विभिन्न दृष्टिकोणों के आधार पर इसकी पड़ताल करें। मैंने विभिन्न स्रोतों से संतुलित जानकारी एकत्र की है, जिसमें वेब सर्च, एक्स (पूर्व ट्विटर) पोस्ट्स और विश्लेषण शामिल हैं, ताकि सभी पक्षों को प्रतिनिधित्व मिले।
आइए, हालिया घटनाओं, आंकड़ों और विभिन्न दृष्टिकोणों के आधार पर इसकी पड़ताल करें। मैंने विभिन्न स्रोतों से संतुलित जानकारी एकत्र की है, जिसमें वेब सर्च, एक्स (पूर्व ट्विटर) पोस्ट्स और विश्लेषण शामिल हैं, ताकि सभी पक्षों को प्रतिनिधित्व मिले।
हालिया घटनाएँ जो चिंता बढ़ा रही हैं
2025 में भारत ने कई ऐसी घटनाओं का सामना किया है जो कानून-व्यवस्था की कमजोरी को उजागर करती हैं। ये न केवल आंतरिक अशांति दर्शाती हैं, बल्कि पड़ोसी देशों की अराजकता से भी प्रेरित लगती हैं:
मुंबई और महाराष्ट्र में हिंसा: अगस्त 2025 में मुंबई में बांग्लादेशी नागरिकों के खिलाफ हिंसा की घटनाएँ बढ़ीं। एक रिपोर्ट के अनुसार, पुलिस की निष्क्रियता और भीड़ द्वारा कानून हाथ में लेने की प्रवृत्ति ने चिंता जगाई है। फ्री प्रेस जर्नल के एक लेख में इसे "लोकतंत्र के लिए खतरा" बताया गया, जहाँ कोर्ट ऑर्डरों की अवहेलना आम हो गई है।
एक्स पर एक यूजर ने लिखा, "अराजकता का मतलब कानून का अभाव है, जहाँ भीड़ जज और जल्लाद बन जाती है।"
नक्सली हिंसा और जातीय संघर्ष: मई 2025 में छत्तीसगढ़ के अभुजमढ़ में 27 नक्सलियों की मौत हुई, लेकिन इससे पहले बस्तर में 31 नक्सली और 2 सुरक्षाकर्मी मारे गए। मणिपुर में मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने जातीय हिंसा के बीच इस्तीफा दे दिया। विकिपीडिया के अनुसार, ये घटनाएँ राज्य की स्थिरता को चुनौती दे रही हैं।
एक्स पर विपक्षी नेता राहुल गांधी की पोस्ट पर बहस छिड़ी, जहाँ युवाओं को "संविधान बचाने" की अपील को कुछ ने "अराजकता फैलाने" की कोशिश बताया।
चुनावी और संस्थागत संकट: फरवरी 2025 में रणवीर अल्लाहबड़िया के बयानों पर राष्ट्रव्यापी बहस हुई, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सवाल उठाती है। फ्रीडम हाउस की 2025 रिपोर्ट में भारत को "मुस्लिमों पर बढ़ते उत्पीड़न" और संस्थाओं पर बीजेपी के दबाव के कारण "आंशिक रूप से स्वतंत्र" बताया गया।
एक्स पर एक पोस्ट में कहा गया, "चुनाव आयोग की विश्वसनीयता खत्म हो गई; अराजकता तब आती है जब सिस्टम फेल होता है।"
आर्थिक और सामाजिक अस्थिरता: अप्रैल 2025 में प्रयागराज में कुंभ मेला जाते तीर्थयात्रियों का हादसा (10 मौतें) और जून में बेंगलुरु में भीड़भाड़ में 11 मौतें हुईं। ऑक्सफोर्ड एनालिटिका की रिपोर्ट में गठबंधन राजनीति और आर्थिक सुधारों की धीमी गति को 2025 की चुनौती बताया गया।
लेबर लॉ एडवाइजर के अनुसार, स्टैगफ्लेशन का खतरा मंडरा रहा है, जो बेरोजगारी और महंगाई को बढ़ावा देगा।
ये घटनाएँ दर्शाती हैं कि कानून-व्यवस्था कमजोर हो रही है। हिंदुस्तान टाइम्स के एक पुराने लेख (2018) में जॉन केनेथ गैल्ब्रेथ के शब्दों का हवाला दिया गया: भारत एक "कार्यशील अराजकता" है, लेकिन अब यह "कार्यशील" लगना बंद हो रहा है।
पड़ोसी देशों का सबक: अराजकता कैसे फैलती है?
दक्षिण एशिया में अस्थिरता भारत के लिए चेतावनी है।
नेपाल: सितंबर 2025 में जेन-जेड प्रदर्शनों ने पीएम के.पी. ओली को इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया। न्यूज ट्रैक हिंदी के अनुसार, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी ने "अराजकता का रूप" ले लिया, और भारत की चिंता बढ़ गई।
एक्स पर एक पोस्ट में कहा गया, "नेपाल की अराजकता भारत के लिए खतरा; मोदी जी की स्थिरता ही बचाव है।"
बांग्लादेश, श्रीलंका और पाकिस्तान: बांग्लादेश में 2024 की क्रांति के बाद अस्थिरता बनी हुई है। विकिपीडिया के अनुसार, मई 2025 में भारत-पाकिस्तान संघर्ष (पहलगाम हमला) ने तनाव बढ़ाया।
द कर्वान के लेख में चेतावनी दी गई: "अधूरे आर्थिक वादे और कमजोर संस्थाएँ विस्फोटक स्थिति पैदा करती हैं।"
एक्स पर बहस: कई यूजर्स (जैसे @Tushar15_) ने लिखा, "पड़ोस में अराजकता; भारत में भी CAA या किसान कानून जैसे मुद्दों से शुरुआत हो सकती है।"
विपक्षी दृष्टिकोण में अरुंधति रॉय का हवाला: "भारत अब लोकतंत्र नहीं, हिंदू फासीवादी उद्यम है।"
ये उदाहरण दिखाते हैं कि अराजकता आर्थिक असफलता, अल्पसंख्यक उत्पीड़न और संस्थागत कब्जे से जन्म लेती है – जो भारत में भी दिख रही हैं।
सकारात्मक पक्ष: अराजकता से बचने के संकेत
सभी दृष्टिकोण नकारात्मक नहीं हैं। कुछ स्रोत भारत की लचीलापन पर जोर देते हैं:
आर्थिक स्थिरता: दृष्टि आईएएस के अनुसार, 2024-25 में राजकोषीय घाटा 4.8% पर नियंत्रित रहा।
स्वराज्य मैगजीन में इमिग्रेशन बिल 2025 को "अराजकता से जवाबदेही की ओर" कदम बताया गया।
वैश्विक स्थिति: टीवी9 हिंदी के अनुसार, पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत 2025 की "ग्रेट पावर्स" सूची में शीर्ष 5 में है।
द एमिसरी के अप्रैल 2025 लेख में कहा गया: "भारत गतिरोध या प्रज्वलन के चौराहे पर; सुधार से यह मजबूत हो सकता है।"
ऐतिहासिक संदर्भ: विकिपीडिया के अनुसार, गांधी का "प्रबुद्ध अराजकता" का विचार भारत की विविधता में निहित है, लेकिन राज्य की जरूरत को नकारा नहीं जा सकता।
एक्स पर एक यूजर ने लिखा, "अराजकता महिमामंडन न करें; नेपाल का चेहरा देखें।"
फ्रीडम हाउस रिपोर्ट भी स्वीकार करती है कि भारत की विविधता ने 70 वर्षों में अस्तित्व की चुनौतियों का सामना किया है।
कारण और समाधान: क्या आगे रास्ता है?
कारण:
राजनीतिक ध्रुवीकरण: हिंदुस्तान के एक संपादकीय में "एक देश, एक चुनाव" को "खतरनाक" बताया गया, जो संघीय ढांचे को कमजोर कर सकता है।
सामाजिक विभाजन: एक्स पर @talk2anuradha ने लिखा, "आंतरिक युद्ध की ओर: आतंकवादियों को सहानुभूति, आरक्षण चरम पर।"
द कर्वान के अनुसार, केंद्रीकरण और डिजिटल शटडाउन समस्याओं को बढ़ा रहे हैं।
कानूनी कमजोरी: क्वोरा पर चर्चा: भारत में "कानूनहीनता" है, न कि सच्ची अराजकता।
समाधान:
- मजबूत कानून-व्यवस्था: इमिग्रेशन बिल जैसे सुधारों को तेज करना।
- आर्थिक समावेश: बजट 2025-26 में राजकोषीय अनुशासन और विकास का संतुलन।
- संवाद: द एमिसरी के अनुसार, विविधता को ताकत बनाना, न कि बोझ।
सभी दृष्टिकोण नकारात्मक नहीं हैं। कुछ स्रोत भारत की लचीलापन पर जोर देते हैं:
आर्थिक स्थिरता: दृष्टि आईएएस के अनुसार, 2024-25 में राजकोषीय घाटा 4.8% पर नियंत्रित रहा।
स्वराज्य मैगजीन में इमिग्रेशन बिल 2025 को "अराजकता से जवाबदेही की ओर" कदम बताया गया।
वैश्विक स्थिति: टीवी9 हिंदी के अनुसार, पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत 2025 की "ग्रेट पावर्स" सूची में शीर्ष 5 में है।
द एमिसरी के अप्रैल 2025 लेख में कहा गया: "भारत गतिरोध या प्रज्वलन के चौराहे पर; सुधार से यह मजबूत हो सकता है।"
ऐतिहासिक संदर्भ: विकिपीडिया के अनुसार, गांधी का "प्रबुद्ध अराजकता" का विचार भारत की विविधता में निहित है, लेकिन राज्य की जरूरत को नकारा नहीं जा सकता।
एक्स पर एक यूजर ने लिखा, "अराजकता महिमामंडन न करें; नेपाल का चेहरा देखें।"
फ्रीडम हाउस रिपोर्ट भी स्वीकार करती है कि भारत की विविधता ने 70 वर्षों में अस्तित्व की चुनौतियों का सामना किया है।
कारण और समाधान: क्या आगे रास्ता है?
कारण:
राजनीतिक ध्रुवीकरण: हिंदुस्तान के एक संपादकीय में "एक देश, एक चुनाव" को "खतरनाक" बताया गया, जो संघीय ढांचे को कमजोर कर सकता है।
सामाजिक विभाजन: एक्स पर @talk2anuradha ने लिखा, "आंतरिक युद्ध की ओर: आतंकवादियों को सहानुभूति, आरक्षण चरम पर।"
द कर्वान के अनुसार, केंद्रीकरण और डिजिटल शटडाउन समस्याओं को बढ़ा रहे हैं।
कानूनी कमजोरी: क्वोरा पर चर्चा: भारत में "कानूनहीनता" है, न कि सच्ची अराजकता।
समाधान:
- मजबूत कानून-व्यवस्था: इमिग्रेशन बिल जैसे सुधारों को तेज करना।
- आर्थिक समावेश: बजट 2025-26 में राजकोषीय अनुशासन और विकास का संतुलन।
- संवाद: द एमिसरी के अनुसार, विविधता को ताकत बनाना, न कि बोझ।
विविधता को ताकत बनाना, न कि बोझ।
"विविधता को ताकत बनाना, न कि बोझ" – यह विचार भारत जैसे बहुसांस्कृतिक और बहुभाषी देश के लिए अत्यंत प्रासंगिक है। भारत की विविधता – भाषा, धर्म, जाति, क्षेत्र और संस्कृति में – ऐतिहासिक रूप से इसकी ताकत रही है, लेकिन इसे बोझ के रूप में देखने की प्रवृत्ति भी बढ़ी है, खासकर हाल के सामाजिक और राजनीतिक ध्रुवीकरण के संदर्भ में। आइए, इसे गहराई से समझें और देखें कि विविधता को वास्तव में ताकत कैसे बनाया जा सकता है, साथ ही कुछ व्यावहारिक उपाय और उदाहरणों पर विचार करें।
"विविधता को ताकत बनाना, न कि बोझ" – यह विचार भारत जैसे बहुसांस्कृतिक और बहुभाषी देश के लिए अत्यंत प्रासंगिक है। भारत की विविधता – भाषा, धर्म, जाति, क्षेत्र और संस्कृति में – ऐतिहासिक रूप से इसकी ताकत रही है, लेकिन इसे बोझ के रूप में देखने की प्रवृत्ति भी बढ़ी है, खासकर हाल के सामाजिक और राजनीतिक ध्रुवीकरण के संदर्भ में। आइए, इसे गहराई से समझें और देखें कि विविधता को वास्तव में ताकत कैसे बनाया जा सकता है, साथ ही कुछ व्यावहारिक उपाय और उदाहरणों पर विचार करें।
भारत की विविधता: एक ऐतिहासिक ताकत
भारत की विविधता ने इसे एक अनूठा वैश्विक पहचान दी है।
सांस्कृतिक समृद्धि: भारत में 22 आधिकारिक भाषाएँ, 1,600 से अधिक बोलियाँ, और हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध जैसे कई धर्म सह-अस्तित्व में हैं। यह विविधता कला, साहित्य, और नवाचार का स्रोत रही है। उदाहरण: भारतीय सिनेमा (बॉलीवुड, टॉलीवुड, आदि) और खानपान (पंजाबी, दक्षिण भारतीय, बंगाली व्यंजन) वैश्विक स्तर पर सराहे जाते हैं।
ऐतिहासिक उदाहरण: स्वतंत्रता संग्राम में विविध समुदायों – गाँधी, नेहरू, अंबेडकर, भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस, मौलाना अब्दुल कलाम आजाद व खान अब्दुल गफ्फार खान – ने एकजुट होकर ब्रिटिश शासन को चुनौती दी। यह एकता विविधता की ताकत का प्रतीक थी।
आर्थिक लाभ: द एमिसरी के 2025 के एक लेख में कहा गया कि भारत की विविधता इसे वैश्विक बाजार में अनुकूलनशील बनाती है।
उदाहरण के लिए, भारत का आईटी सेक्टर और स्टार्टअप इकोसिस्टम विभिन्न क्षेत्रों के दृष्टिकोणों से लाभ उठाता है।
विविधता को बोझ क्यों समझा जा रहा है?
हाल के वर्षों में, कुछ कारकों ने विविधता को बोझ के रूप में प्रस्तुत किया है:
सामाजिक ध्रुवीकरण: धार्मिक और जातीय तनाव, जैसे मणिपुर में जातीय हिंसा (2025 में 2 सुरक्षाकर्मियों सहित कई मौतें) और मुंबई में बांग्लादेशी नागरिकों के खिलाफ हिंसा, ने सामुदायिक विभाजन को उजागर किया।
राजनीतिक हथियार: एक्स पर एक यूजर (@talk2anuradha) ने लिखा, "आंतरिक युद्ध की ओर: आतंकवादियों को सहानुभूति, आरक्षण चरम पर।" यह दर्शाता है कि कुछ लोग विविधता को नीतियों (जैसे आरक्षण) के दुरुपयोग से जोड़ते हैं।
संस्थागत कमजोरी: फ्रीडम हाउस की 2025 की रिपोर्ट में भारत को "आंशिक रूप से स्वतंत्र" बताया गया, जहाँ अल्पसंख्यकों पर बढ़ता दबाव और केंद्रीकरण विविधता को कमजोर कर रहा है।
क्षेत्रीय असंतुलन: द कर्वान के अनुसार, केंद्रीकरण और डिजिटल शटडाउन जैसे कदम क्षेत्रीय और सांस्कृतिक पहचानों को दबा रहे हैं, जिससे असंतोष बढ़ रहा है।
भारत की विविधता ने इसे एक अनूठा वैश्विक पहचान दी है।
सांस्कृतिक समृद्धि: भारत में 22 आधिकारिक भाषाएँ, 1,600 से अधिक बोलियाँ, और हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध जैसे कई धर्म सह-अस्तित्व में हैं। यह विविधता कला, साहित्य, और नवाचार का स्रोत रही है। उदाहरण: भारतीय सिनेमा (बॉलीवुड, टॉलीवुड, आदि) और खानपान (पंजाबी, दक्षिण भारतीय, बंगाली व्यंजन) वैश्विक स्तर पर सराहे जाते हैं।
ऐतिहासिक उदाहरण: स्वतंत्रता संग्राम में विविध समुदायों – गाँधी, नेहरू, अंबेडकर, भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस, मौलाना अब्दुल कलाम आजाद व खान अब्दुल गफ्फार खान – ने एकजुट होकर ब्रिटिश शासन को चुनौती दी। यह एकता विविधता की ताकत का प्रतीक थी।
आर्थिक लाभ: द एमिसरी के 2025 के एक लेख में कहा गया कि भारत की विविधता इसे वैश्विक बाजार में अनुकूलनशील बनाती है।
उदाहरण के लिए, भारत का आईटी सेक्टर और स्टार्टअप इकोसिस्टम विभिन्न क्षेत्रों के दृष्टिकोणों से लाभ उठाता है।
विविधता को बोझ क्यों समझा जा रहा है?
हाल के वर्षों में, कुछ कारकों ने विविधता को बोझ के रूप में प्रस्तुत किया है:
सामाजिक ध्रुवीकरण: धार्मिक और जातीय तनाव, जैसे मणिपुर में जातीय हिंसा (2025 में 2 सुरक्षाकर्मियों सहित कई मौतें) और मुंबई में बांग्लादेशी नागरिकों के खिलाफ हिंसा, ने सामुदायिक विभाजन को उजागर किया।
राजनीतिक हथियार: एक्स पर एक यूजर (@talk2anuradha) ने लिखा, "आंतरिक युद्ध की ओर: आतंकवादियों को सहानुभूति, आरक्षण चरम पर।" यह दर्शाता है कि कुछ लोग विविधता को नीतियों (जैसे आरक्षण) के दुरुपयोग से जोड़ते हैं।
संस्थागत कमजोरी: फ्रीडम हाउस की 2025 की रिपोर्ट में भारत को "आंशिक रूप से स्वतंत्र" बताया गया, जहाँ अल्पसंख्यकों पर बढ़ता दबाव और केंद्रीकरण विविधता को कमजोर कर रहा है।
क्षेत्रीय असंतुलन: द कर्वान के अनुसार, केंद्रीकरण और डिजिटल शटडाउन जैसे कदम क्षेत्रीय और सांस्कृतिक पहचानों को दबा रहे हैं, जिससे असंतोष बढ़ रहा है।
विविधता को ताकत बनाने के उपाय
विविधता को बोझ से ताकत में बदलने के लिए ठोस कदमों की जरूरत है। यहाँ कुछ सुझाव हैं, जो हालिया विश्लेषण और वैश्विक उदाहरणों पर आधारित हैं:
शिक्षा और जागरूकता
स्कूली पाठ्यक्रम में विविधता: बच्चों को विभिन्न संस्कृतियों, धर्मों और भाषाओं का सम्मान सिखाना। उदाहरण: सिंगापुर का स्कूली मॉडल, जहाँ मलय, चीनी और तमिल संस्कृतियों को पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है।
मीडिया की भूमिका़: न्यूज चैनल और सोशल मीडिया को संतुलित कवरेज देना चाहिए। एक्स पर यूजर्स ने सुझाव दिया कि "मीडिया को सनसनीखेज खबरों के बजाय एकता को बढ़ावा देना चाहिए।"
संस्थागत सुधार
संघीय ढांचे को मजबूत करना हिंदुस्तान के एक संपादकीय में "एक देश, एक चुनाव" को संघीय ढांचे के लिए खतरा बताया गया।
इसके बजाय, राज्यों को अधिक स्वायत्तता और स्थानीय संस्कृतियों का सम्मान करना चाहिए।
न्यायिक स्वतंत्रता फ्री प्रेस जर्नल ने कोर्ट ऑर्डरों की अवहेलना को "लोकतंत्र के लिए खतरा" बताया। स्वतंत्र न्यायपालिका और पुलिस सुधार सामाजिक तनाव को कम कर सकते हैं।
आर्थिक समावेश
क्षेत्रीय विकास: दृष्टि आईएएस के अनुसार, 2024-25 में राजकोषीय घाटा नियंत्रित रहा, लेकिन क्षेत्रीय असमानता को कम करने के लिए निवेश जरूरी है।
उदाहरण: पूर्वोत्तर में बुनियादी ढांचे और स्टार्टअप्स को बढ़ावा।
सामाजिक नीतियाँ: आरक्षण और कल्याणकारी योजनाओं को पारदर्शी और समावेशी बनाना। स्वराज्य मैगजीन ने इमिग्रेशन बिल 2025 को समावेशी बताया।
संवाद और सहभागिता
सामुदायिक मंच: स्थानीय स्तर पर धार्मिक और सांस्कृतिक समूहों के बीच संवाद मंच बनाना।
उदाहरण: दक्षिण अफ्रीका का "सत्य और सुलह आयोग" मॉडल, जो समुदायों को एकजुट करता है।
युवा नेतृत्व: राहुल गांधी की "संविधान बचाने" की अपील ने युवाओं को प्रेरित किया।
युवाओं को विविधता के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
वैश्विक और क्षेत्रीय संदर्भ
नेपाल और बांग्लादेश: पड़ोसी देशों में अराजकता (जैसे नेपाल में 2025 के जेन-जेड प्रदर्शन) दिखाती है कि विविधता को गलत तरीके से संभालने से अस्थिरता बढ़ती है।भारत को इससे सबक लेना चाहिए।
कनाडा और यूरोपीय संघ: ये क्षेत्र अपनी विविधता को आर्थिक और सामाजिक ताकत बनाते हैं। कनाडा में आप्रवासियों की नीतियाँ और यूरोपीय संघ में क्षेत्रीय सहयोग भारत के लिए प्रेरणा हो सकते हैं।
निष्कर्ष: चेतावनी, न कि भाग्य
भारत अराजकता की ओर बढ़ रहा है – यह एक अतिशयोक्ति हो सकती है, लेकिन चेतावनी निश्चित है। पड़ोसी देशों की तरह, हमारी असमानताएँ और संस्थागत कमजोरियाँ विस्फोटक हैं। लेकिन हमारी लोकतांत्रिक परंपरा और युवा ऊर्जा (जैसा राहुल गांधी की अपील में) इसे पलट सकती है। यदि सरकार, विपक्ष और नागरिक एकजुट हों, तो 2025 "इग्निशन" का वर्ष बन सकता है, न कि "इम्पास" का।
विविधता भारत का डीएनए है। इसे बोझ के रूप में देखने के बजाय, हमें इसे एक अवसर के रूप में अपनाना चाहिए। जैसा कि द एमिसरी ने कहा, भारत 2025 में "गतिरोध या प्रज्वलन" के चौराहे पर है। शिक्षा, समावेशी नीतियों, और संवाद के जरिए हम इसे ताकत बना सकते हैं। गांधी का "प्रबुद्ध अराजकता" का विचार आज भी प्रासंगिक है – एक ऐसी व्यवस्था जहाँ विविधता स्वतंत्रता और एकता का प्रतीक हो। इस प्रसंग में आपका क्या विचार है । जय-हिन्द....!!
मोहम्मद रफीक चौहान
(लेखक डिस्ट्रिक्ट कोर्ट करनाल में एडवोकेट, लॉ बुक लेखक और क़ानूनी सलाहकार हैं)
विविधता को बोझ से ताकत में बदलने के लिए ठोस कदमों की जरूरत है। यहाँ कुछ सुझाव हैं, जो हालिया विश्लेषण और वैश्विक उदाहरणों पर आधारित हैं:
शिक्षा और जागरूकता
स्कूली पाठ्यक्रम में विविधता: बच्चों को विभिन्न संस्कृतियों, धर्मों और भाषाओं का सम्मान सिखाना। उदाहरण: सिंगापुर का स्कूली मॉडल, जहाँ मलय, चीनी और तमिल संस्कृतियों को पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है।
मीडिया की भूमिका़: न्यूज चैनल और सोशल मीडिया को संतुलित कवरेज देना चाहिए। एक्स पर यूजर्स ने सुझाव दिया कि "मीडिया को सनसनीखेज खबरों के बजाय एकता को बढ़ावा देना चाहिए।"
संस्थागत सुधार
संघीय ढांचे को मजबूत करना हिंदुस्तान के एक संपादकीय में "एक देश, एक चुनाव" को संघीय ढांचे के लिए खतरा बताया गया।
इसके बजाय, राज्यों को अधिक स्वायत्तता और स्थानीय संस्कृतियों का सम्मान करना चाहिए।
न्यायिक स्वतंत्रता फ्री प्रेस जर्नल ने कोर्ट ऑर्डरों की अवहेलना को "लोकतंत्र के लिए खतरा" बताया। स्वतंत्र न्यायपालिका और पुलिस सुधार सामाजिक तनाव को कम कर सकते हैं।
आर्थिक समावेश
क्षेत्रीय विकास: दृष्टि आईएएस के अनुसार, 2024-25 में राजकोषीय घाटा नियंत्रित रहा, लेकिन क्षेत्रीय असमानता को कम करने के लिए निवेश जरूरी है।
उदाहरण: पूर्वोत्तर में बुनियादी ढांचे और स्टार्टअप्स को बढ़ावा।
सामाजिक नीतियाँ: आरक्षण और कल्याणकारी योजनाओं को पारदर्शी और समावेशी बनाना। स्वराज्य मैगजीन ने इमिग्रेशन बिल 2025 को समावेशी बताया।
संवाद और सहभागिता
सामुदायिक मंच: स्थानीय स्तर पर धार्मिक और सांस्कृतिक समूहों के बीच संवाद मंच बनाना।
उदाहरण: दक्षिण अफ्रीका का "सत्य और सुलह आयोग" मॉडल, जो समुदायों को एकजुट करता है।
युवा नेतृत्व: राहुल गांधी की "संविधान बचाने" की अपील ने युवाओं को प्रेरित किया।
युवाओं को विविधता के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
वैश्विक और क्षेत्रीय संदर्भ
नेपाल और बांग्लादेश: पड़ोसी देशों में अराजकता (जैसे नेपाल में 2025 के जेन-जेड प्रदर्शन) दिखाती है कि विविधता को गलत तरीके से संभालने से अस्थिरता बढ़ती है।भारत को इससे सबक लेना चाहिए।
कनाडा और यूरोपीय संघ: ये क्षेत्र अपनी विविधता को आर्थिक और सामाजिक ताकत बनाते हैं। कनाडा में आप्रवासियों की नीतियाँ और यूरोपीय संघ में क्षेत्रीय सहयोग भारत के लिए प्रेरणा हो सकते हैं।
निष्कर्ष: चेतावनी, न कि भाग्य
भारत अराजकता की ओर बढ़ रहा है – यह एक अतिशयोक्ति हो सकती है, लेकिन चेतावनी निश्चित है। पड़ोसी देशों की तरह, हमारी असमानताएँ और संस्थागत कमजोरियाँ विस्फोटक हैं। लेकिन हमारी लोकतांत्रिक परंपरा और युवा ऊर्जा (जैसा राहुल गांधी की अपील में) इसे पलट सकती है। यदि सरकार, विपक्ष और नागरिक एकजुट हों, तो 2025 "इग्निशन" का वर्ष बन सकता है, न कि "इम्पास" का।
विविधता भारत का डीएनए है। इसे बोझ के रूप में देखने के बजाय, हमें इसे एक अवसर के रूप में अपनाना चाहिए। जैसा कि द एमिसरी ने कहा, भारत 2025 में "गतिरोध या प्रज्वलन" के चौराहे पर है। शिक्षा, समावेशी नीतियों, और संवाद के जरिए हम इसे ताकत बना सकते हैं। गांधी का "प्रबुद्ध अराजकता" का विचार आज भी प्रासंगिक है – एक ऐसी व्यवस्था जहाँ विविधता स्वतंत्रता और एकता का प्रतीक हो। इस प्रसंग में आपका क्या विचार है । जय-हिन्द....!!
मोहम्मद रफीक चौहान
(लेखक डिस्ट्रिक्ट कोर्ट करनाल में एडवोकेट, लॉ बुक लेखक और क़ानूनी सलाहकार हैं)
